प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
(आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी द्वारा रचित एक भावप्रवण ग़ज़ल “कठिन श्रम की साधना”। हमारे प्रबुद्ध पाठक गण प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे। )
☆ काव्य धारा 70 ☆ गजल – ’’कठिन श्रम की साधना’’ ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆
आने वाले कल से हर एक आदमी अनजान है
किया जा सकता है केवल काल्पनिक अनुमान है।
सोचकर भी बहुत कुछ, कर पाता कोई कुछ भी नहीं
सफलता की राह पै’ अक्सर खड़ा व्यवधान है।
करती नई आशायें नित खुशियों की मोहक सर्जना
जोड़ते जिनके लिये सब सैकड़ों सामान हैं।
कठिन श्रम की साधना ही दिलाती है सफलता
परिश्रम भावी सफलता की सही पहचान है।
राह चलते जो अकेले भी कभी थकते नहीं
वहीं कह सकते है कि यह जिन्दगी आसान है।
हर दिशा में क्षितिज के भी पार हैं कई बस्तियॉ
किया जा सकता पहुॅंच ही कोई नव अनुसंधान है।
प्रेरणा उत्साह जिज्ञासा का हो यदि साथ तो
परिश्रम देता सदा मनवांछित वरदान है।
कठिन श्रम की साधना की कला जिसको सिद्ध है
वही हर अभियान में पाता विजय औ’ मान है।
© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
ए २३३ , ओल्ड मीनाल रेजीडेंसी भोपाल ४६२०२३
मो. 9425484452
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈