श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’
(ई-अभिव्यक्ति में संस्कारधानी की सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’ जी द्वारा “व्यंग्य से सीखें और सिखाएं” शीर्षक से साप्ताहिक स्तम्भ प्रारम्भ करने के लिए हार्दिक आभार। आप अविचल प्रभा मासिक ई पत्रिका की प्रधान सम्पादक हैं। कई साहित्यिक संस्थाओं के महत्वपूर्ण पदों पर सुशोभित हैं तथा कई पुरस्कारों/अलंकरणों से पुरस्कृत/अलंकृत हैं। आपके साप्ताहिक स्तम्भ – व्यंग्य से सीखें और सिखाएं में आज प्रस्तुत है एक सार्थक एवं विचारणीय रचना “मुद्दे की बात…”। इस सार्थक रचना के लिए श्रीमती छाया सक्सेना जी की लेखनी को सादर नमन।
आप प्रत्येक गुरुवार को श्रीमती छाया सक्सेना जी की रचना को आत्मसात कर सकेंगे।)
अक्सर उबाऊ बातचीत से बचने के लिए लोग कह देते हैं, सीधे- सीधे मुद्दे पर आइए। बात चाहें कुछ भी हो, जल्दी पूरी हो, ये सभी की इच्छा रहती है। आजकल यही प्रयोग पत्रकारों द्वारा चुनावी चर्चा में किया जा रहा है। विकासवाद, राष्ट्रवाद, बदलाव, महंगाई, बेरोजगारी इन शब्दों का प्रयोग खूब हो रहा है। घोषणा पत्र सुनने , पढ़ने व समझने का समय किसी के पास नहीं है क्योंकि सबको पता है ये चुनावी वादे हैं जो बिना बरसे ही हवा के साथ हवाई हो जाएंगे।
जैसे ही मतदाता दिखा, सबसे पहले यही प्रश्न पूछा जाता है कि आप किस मुद्दे को ध्यान में रखकर दल का चुनाव करेंगे ?
तत्काल ही उत्तर मिल जाता है। हाँ इतना जरूर है कि कुछ लोग इसका अर्थ नहीं समझते हैं और कहने लगते हैं कि हमें क्या हम तो इस निशान पर बटन दबाएंगे। वहीं कुछ लोग अपने पसंदीदा दल की तारीफ़ में कसीदे पढ़ने लगते हैं तो कुछ लोग नासमझ बनते हुए, घुमाते फिराते हुए, अंत में कह देते हैं वोट किसको देना है, अभी तक सोचा ही नहीं।
इस सोचने समझने के मध्य पत्रकार भी तो किसी न किसी दल की विचारधारा का समर्थक होता है, अनचाहे उत्तरों से उसका चेहरा बुझा हुआ साफ देखा जा सकता है। कुछ भी कहिए हाथ में माला लेकर भागते हुए लोग जो आगे जाकर माला देते हैं कि हमारे नेता जी आने वाले हैं उन्हें आप पहना दीजियेगा। इधर नेता जी भी आठ- दस माला तो पहने रहते हैं बाकी उतार- उतार के उसी व्यक्ति को दे देते हैं। ठीक भी है, ऐसा करने से फूलों व रुपए दोनों की बचत होती है। साथ में चलती हुई गाड़ियों में बढ़िया धुनों वाले गाने बजते रहतें हैं जिसकी धुन व बोल सभी के मनोमस्तिष्क पर छा जाते हैं। इस बार के चुनावों में मतदाता भी खूब मनोरंजन कर रहे हैं। एक बात तो साफ हो गयी है कि भविष्य में उन्हें भी पाँच वर्ष में एक बार आने वाले इन पर्वों का बेसब्री से इंतजार रहेगा।
© श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’
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