डॉ कुंदन सिंह परिहार
(वरिष्ठतम साहित्यकार आदरणीय डॉ कुन्दन सिंह परिहार जी का साहित्य विशेषकर व्यंग्य एवं लघुकथाएं ई-अभिव्यक्ति के माध्यम से काफी पढ़ी एवं सराही जाती रही हैं। हम प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – “परिहार जी का साहित्यिक संसार” शीर्षक के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाते रहते हैं। डॉ कुंदन सिंह परिहार जी की रचनाओं के पात्र हमें हमारे आसपास ही दिख जाते हैं। कुछ पात्र तो अक्सर हमारे आसपास या गली मोहल्ले में ही नज़र आ जाते हैं। उन पात्रों की वाक्पटुता और उनके हावभाव को डॉ परिहार जी उन्हीं की बोलचाल की भाषा का प्रयोग करते हुए अपना साहित्यिक संसार रच डालते हैं।आज प्रस्तुत है आपका एक अतिसुन्दर व्यंग्य ‘नींद क्यों रात भर नहीं आती ’। इस अतिसुन्दर व्यंग्य रचना के लिए डॉ परिहार जी की लेखनी को सादर नमन।)
☆ व्यंग्य – नींद क्यों रात भर नहीं आती ☆
ग़ालिब ने लिखा है— ‘मौत का एक दिन मुअय्यन है, नींद क्यों रात भर नहीं आती?’ यानी जब मौत का आना निश्चित है तो फिर उसकी चिन्ता में नींद क्यों हराम होती है? अर्ज़ है कि मौत का आना तो निश्चित है, लेकिन उसके आने की तिथि का कोई ठिकाना नहीं है। जब मर्ज़ी आ जाए और आदमी को एक झटके में उसके ऐशो- इशरत, नाम-धाम से समेट कर आगे बढ़ जाए। भारी विडम्बना है।
सभी धर्मों में यह माना जाता है कि आदमी का जीवन पूर्व नियत है, यानी सब कुछ पहले से ही निश्चित है। यही प्रारब्ध,भाग्य, मुकद्दर, नसीब, ‘फ़ेट’ और ‘डेस्टिनी’ का मतलब है। ‘राई घटै ना तिल बढ़ै, रहु रे जीव निश्शंक।’ तुलसीदास ने लिखा है— ‘को करि तरक बढ़ावे साखा, हुईहै वहि जो राम रचि राखा।’ अर्थात, जीवन मरण सब पूर्व नियत है। हस्तरेखा-शास्त्र और ज्योतिष भी यही बताते हैं।
मौत का दिन मुअय्यन होने के बावजूद नींद इसलिए नहीं आती कि लाखों साल से आदमी की ज़िन्दगी में पूर्ण विराम लग रहा है, लेकिन अभी तक ऊपर वाले के यहाँ मरहूम को नोटिस देने की कोई रिवायत नहीं बनी है। कोई ट्रेन में सफर करते करते अचानक लम्बी यात्रा पर निकल जाता है तो कोई हवाई जहाज़ में उड़ते उड़ते एक पल में और ऊपर उठ जाता है। धरती पर अगर बिना नोटिस के कोई कार्रवाई हो जाए तो अदालतें तुरन्त उसे अन्याय मानकर खारिज कर देती हैं, लेकिन ज़िन्दगी जैसी बेशकीमती चीज़ बिना नोटिस के छिन जाने के ख़िलाफ़ न कोई सुनवाई है, न कोई अपील। इसे दूसरी दुनिया की प्रशासनिक चूक न कहें तो क्या कहें? यह निश्चय ही हमारी ज़िन्दगी की बेकद्री है।
हमारे लोक में बिना नोटिस के कोई कार्रवाई नहीं हो सकती, चाहे वह नौकरी से बाहर करने का मामला हो या किसी की संपत्ति के अधिग्रहण का। जो लोग कुर्सी पर सोते सोते नौकरी पूरी कर लेते हैं उन्हें भी बिना ‘शो कॉज़ नोटिस’ के बाहर नहीं किया जा सकता। कई चतुर लोग मनाते हैं कि उन पर बिना नोटिस के कार्रवाई हो जाए ताकि वे तत्काल कोर्ट से ‘स्टे’ लेकर फिर अपनी कुर्सी पर आराम से सो सकें। अतः इन्तकाल जैसे गंभीर मामले में कोई नोटिस न दिया जाना चिन्ता का विषय है।
मौत से पहले नोटिस मिल जाए तो आदमी अपनी एक नम्बर या दो नम्बर की कमाई का बाँट-बखरा कर सकता है। या यदि वह किसी को संपत्ति नहीं देना चाहता तो नोटिस की अवधि में उसे फटाफट खा-उड़ा कर बराबर कर सकता है। जिन लोगों ने ज़िन्दगी भर तथाकथित पाप किये हैं वे नोटिस मिलने पर बाकी अवधि में कुछ पुण्य कमा सकते हैं, ताकि उन्हें ऊपर निखालिस पापी के रूप में हाज़िर न होना पड़े। इसके अलावा हुनरमन्द लोग नोटिस मिलने के बाद इष्ट- मित्रों से बड़ी रकम उधार लेकर नोटिस में दी गयी रुख़सती की तारीख के बाद चुकाने का वादा करके अपनी मूँछों पर ताव दे सकते हैं।
नोटिस न मिलने से आदमी के लिए बड़ी दिक्कतें पेश हो जाती हैं। आदमी बिना कोई वसीयतनामा किये अचानक चल बसे तो वारिसों में सिर फुटौव्वल शुरू हो जाता है। जो जबर और चतुर होते हैं वे संपत्ति का बड़ा हिस्सा ले उड़ते हैं। संपत्ति उन नालायकों को मिल जाती है जिन्हें अचानक दिवंगत हुए पिताजी नहीं देना चाहते थे। अमेरिका के एक खरबपति का किस्सा पढ़ा था जिनका विमान अचानक समुद्र में गुम हो गया था। खरबपति के अचानक जाने के बाद उनकी संपत्ति के अनेक झूठे-सच्चे हकदार खड़े हो गये। ज़रूरत पड़ी डी.एन.ए. मिलाने की, लेकिन मालिक का शरीर तो गुम हो गया था। डॉक्टरों को याद आया कि कुछ दिन पहले उनके शरीर से एक मस्सा निकाला गया था और वह अभी तक सुरक्षित था। उसी मस्से की मदद से तथाकथित वारिसों के डी.एन.ए. का मिलान हुआ और समस्या का हल निकाला गया। अगर खरबपति महोदय को ऊपर से नोटिस मिल जाता तो यह फजीहत न होती।
हमारे लोक में किसी का ट्रांसफर होता है तो उसे बाकायदा महीना-पन्द्रह रोज़ पहले आदेश मिलता है और ‘जॉइनिंग टाइम’ भी मिलता है, लेकिन एक लोक से दूसरे लोक ट्रांसफर में पूर्व- सूचना तो दूर, ‘फ़ेयरवेल पार्टी’ तक का वक्त नहीं मिलता।
इसलिए मेरा तीनों लोकों के स्वामी से विनम्र निवेदन है कि इस लोक से किसी को उठाने से पहले कम से कम छः महीने के नोटिस की तत्काल व्यवस्था की जाए। स्थितियों के अनुसार नोटिस की अवधि एक दो माह बढ़ाने की व्यवस्था भी हो। मेरा तो यह भी सुझाव है कि आदमी को अपनी कमायी संपत्ति को अपने साथ ऊपर ले जाने की व्यवस्था की जाए ताकि उसके रुख़सत होने के बाद उसकी संपत्ति और सन्तानों की बर्बादी न हो।
एक इल्तिजा और। हमारे लोक में बहुत से वी.आई.पी. हैं जिन्हें हर जगह विशेष ट्रीटमेंट मिलता है। लेकिन आखिरी वक्त में सब को लेने के लिए सिपाही के स्तर के यमदूत भेजे जाते हैं। निवेदन है मालदार और रसूखदार लोगों को लेने के लिए कुछ ओहदेदारों को भेजा जाए ताकि वे अपमानित महसूस किये बिना खुशी खुशी रुख़सत हो सकें।
© डॉ कुंदन सिंह परिहार
जबलपुर, मध्य प्रदेश
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈