डॉ राजकुमार तिवारी ‘सुमित्र’
(संस्कारधानी जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ. राजकुमार “सुमित्र” जी को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया। वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणा स्त्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं आपके अप्रतिम कालजयी दोहे।)
साप्ताहिक स्तम्भ – लेखनी सुमित्र की # 80 – दोहे
मन में उपजी कामना, कह सकते आसक्ति।
बिना किसी भी रूप के, क्या रह सकता व्यक्ति।।
मेरे मन की विकलता, माप सकेगा कौन?
अपनी गति, मति देखकर, रह जाते सब मौन।।
जिसको चाहो टूटकर, वही करे संदेह।
मन की कीमत कुछ नहीं, बहुत कीमती देह।।
प्रिया शरीरी तुम नहीं, रूप शिखा द्मुतिमान ।
रोम रोम में बस गए, अर्पित जीवन प्राण।।
बैरी हैं सब रूप के, चाह रहे अधिकार।
डाले बंसी प्रेम की, तकते रहे शिकार।।
© डॉ राजकुमार “सुमित्र”
112 सर्राफा वार्ड, सिटी कोतवाली के पीछे चुन्नीलाल का बाड़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश
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