श्री सूबेदार पाण्डेय “आत्मानंद”

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – आत्मानंद साहित्य# 115 ☆

☆ ‌अवसाद एक मनोरोग ☆ श्री सूबेदार पाण्डेय “आत्मानंद” ☆

यह  शरीर प्रकृति प्रदत्त एक उपहार हैं जिसकी संरचना विधाताद्वारा की गई है। इसकी आकृति प्रकृति वंशानुगत गुणों द्वारा निर्मित तथा निर्धारित होती है। सृष्टि में पैदा होने वाला शरीर योनि गत गुणों से आच्छादित होता है। यद्यपि भोजन, शयन, संसर्ग प्रत्येक योनि का प्राणी करता है। बुद्धि और ज्ञान प्रत्येक योनि के जीवों में मिलता है, लेकिन मानव शरीर इस मायने में विशिष्ट है कि ईश्वर ने मानव को ज्ञान बुद्धि के साथ विवेक भी दिया है। इसके चलते विवेक शील प्राणी उचित-अनुचित का विचार कर सकता है जब कि अन्य योनि के जीवों में संभवतः यह सुविधा उपलब्ध नहीं है।

शारिरिक संरचना का अध्ययन करने से पता चलता है कि स्थूल शरीर संरचना के मुख्य रूप से दो भाग हैं पहला बाह्यसंरचना तथा दूसरा आंतरिक संरचना। बाह्य शरीर को हम देख सकते हैं जब की आंतरिक संरचना बिना शरीर के विच्छेदन किए देख पाना संभव नहीं है। आज़ विज्ञान बहुत प्रगति कर चुका है लेकिन फिर भी वह इस शरीर की जटिलता को समझ नहीं पाया है अभी भी शोध कार्य जारी है। शरीर की आंतरिक संरचना में जब रासायनिक परिवर्तन अथवा अन्य विकृतियों के चलते तमाम प्रकार के रोग पनपते हैं और मानव जीवन को त्रासद बना देते हैं, इन्ही में कुछ बीमारियां है जो मन से पैदा होती है इनमें अवसाद एक मनोरोग है। इसके रोगी को नींद नहीं आती, वह एकांत वास चाहता है, एकाकी पन के चलते घुटता रहता है।

उसे खुद का जीवन नीरस लगने लगता है। वह खुद को उपेक्षित तथा असमर्थ समझने लगता है उसकी भूख और नींद उड़ जाती है। ऐसे व्यक्ति प्राय: नशे का शिकार हो जाते हैं। कुछ न कुछ बड़बड़ाते रहते हैं और अनाप-शनाप हरकतें करने लगते हैं। अकेले रहना चाहते हैं।

वे अपनी दुख और पीड़ा किसी से कह नहीं सकते हैं उनके भीतर बार बार नकारात्मक विचार आते हैं। और ऐसे रोगी प्राय: आत्महीनता की स्थिति में आत्महत्या कर लेते हैं। मनोरोगी को प्राय: मनोचिकित्सा की आवश्यकता होती है। एक कुशल मनोचिकित्सक ही उनका इलाज कर सकता है। ऐसे रोगी घृणा नहीं सहानुभूति के पात्र होते हैं।  इन्हें ओझा और तांत्रिक से दूर रखना चाहिए इसके पीछे बहुत से कारण होते हैं एक कुशल मनोवैज्ञानिक उनके पारिवारिक पृष्ठभूमि  तथा परिस्थितियों का गहराई से अध्ययन कर उन्हें सामाजिक मुख्य धारा में शामिल कर उन्हें अवसाद से बाहर ला सकता है।

 

© सूबेदार  पांडेय “आत्मानंद”

संपर्क – ग्राम जमसार, सिंधोरा बाज़ार, वाराणसी – 221208, मोबा—6387407266

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈
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