श्री श्याम खापर्डे

(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं। आप प्रत्येक सोमवार पढ़ सकते हैं साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी । आज प्रस्तुत है आपकी एक विचारणीय एवं भावप्रवण कविता “# बचपन #”) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 74 ☆

☆ # बचपन # ☆ 

मै और मेरा पोता

जो चार बरस का है छोटा

जब बगीचे में घूमते हैं

रंग बिरंगी चिड़ियों को देख

मन ही मन झूमते हैं

जब वो मुझसे

बाल सुलभ प्रश्न

पूछता है

तब मैं कुछ प्रश्नों के उत्तर

दे पाता हूं।

कुछ का उत्तर

मुझे भी नहीं सूझता है,

तब मैं उसे चाकलेट खिलाता हूँ

और चुप हो जाता हूँ।

 

उसे देख मुझे अपने

बचपन के दिन

याद आते हैं

मानस पटल पर

वो दृश्य लहराते हैं

वो गांव का छोटा सा

मिट्टी का घर

नीम के पेड़ों की छाया

रहती दिनभर

वो घर के पेड़ों के स्वादिष्ट जाम

वो ललचाते रसभरे आम

वो जामुन काली काली

निंबूओं की झुकी हुई डाली

वो मीठे मीठे बेर

सुबह सुबह लगते थे ढेर

गुलाब और चमेली के

फुलों की सुगंध

खुशबू लिए बहता

पवन मंद मंद

हमें खेलकूद की

पूरी आजादी थी

छुपने के लिए

कभी मां की गोद

तो कभी दादी थी।

 

और अब-

मेरा पोता नींद से

उठ भी नहीं पाता है

पर रोज नर्सरी में

जाता है

उसके सेहत की

हालत खस्ता है

पीठ पर उसके

बड़ा सा बस्ता है

खेल कूद उससे

छूट गया है

जैसे बचपन

उससे रूठ गया है

शिक्षा के व्यावसायिकरण का

यह एक खेल है

मासूम बच्चों के लिए

तो यह एक जेल है

क्या हम बच्चों के चेहरों पर

नैसर्गिक मुस्कान ला पाएंगे ?

या यह मासूम फूल

यूँ ही मुरझाते जाएंगे ?/

 

© श्याम खापर्डे 

फ्लेट न – 402, मैत्री अपार्टमेंट, फेज – बी, रिसाली, दुर्ग ( छत्तीसगढ़) मो  9425592588

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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Mrs Sudershan khare

आज की परिस्थितियों का सटीक वर्णन