श्रीमती सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’
(संस्कारधानी जबलपुर की श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’ जी की लघुकथाओं का अपना संसार है। साप्ताहिक स्तम्भ – श्रीमति सिद्धेश्वरी जी की लघुकथाएं शृंखला में आज प्रस्तुत हैं उनकी एक अतिसुन्दर लघुकथा “निपूती (निःसंतान )”। श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ़ जी ने इस लघुकथा के माध्यम से एक सन्देश दिया है कि – निःसंतान स्त्री का भी ह्रदय होता है और उसमें भी बच्चों के प्रति अथाह स्नेह होता है। क्षण भर को सब कुछ असहज लगता है किन्तु दुनिया में ऐसा भी होता है। )
☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी जी की लघुकथाएं # 19 ☆
☆ निपूती (निःसंतान) ☆
निर्मला अपने ससुराल आई। पति बहुत ही गुणवान और समझदार, दोनों की जोड़ी को सभी बहुत ही सुंदर मानते थे। घर परिवार भी खुश था। धीरे-धीरे साल बीता। घर में अब सास-ससुर बच्चे को लेकर चिंता करने लगे क्योंकि निर्मला का पति स्वरूप चंद्र घर में इकलौता था। परंतु विधान देखिए पता नहीं सब कुछ सही होने पर भी निर्मला को संतान सुख नहीं मिल पा रहा था। बहुत डॉक्टरी इलाज के बाद निर्मला अब थक चुकी थी। और सास-ससुर भी समय से पहले स्वर्ग सिधार गये। दोनों का जीवन अकेलेपन का कारण बनने लगा। अब निर्मला का पति घर से बाहर ज्यादा समय बिताने लगा।
निर्मला बहुत ही भरे पूरे परिवार से थी। घर में भाई भतीजे का, घर में सभी के बच्चों की देखभाल करती। मायके में उसे सब बहुत मानते थे। कोई कुछ नहीं कहता। परंतु निर्मला मन ही मन बहुत दुखी रहती थी। भाई की बिटिया उमा की शादी हुई घर में सभी प्रसन्नता पूर्वक कार्यक्रम होने लगा। अपनी बुआ के पास बैठी भतीजी बुआ का दर्द समझ रही थी। क्योंकि बचपन से बुआ जी से उसका ज्यादा लगाव था। विदाई हुई और ससुराल चली गई। बुआ निर्मला भी अपने घर आ गई। फिर से गुमसुम सी रहने लगी। मुहल्ले में उसने आना जाना बंद कर दिया।
धीरे-धीरे समय सरकता चला गया। निर्मला की भतीजी उमा ने दो साल बाद सुंदर स्वस्थ बच्चे को जन्म दिया। सभी आए, परंतु उसके ससुराल वालों के कारण निर्मला बुआ और फूफा जी को नहीं बुलाया गया। कहने लगे निपूती का इस अच्छे शुभ काम में क्या काम? यह बात भतीजी उमा को अच्छी नहीं लगी। परंतु कुछ कर ना सकी।
अचानक कुछ दिनों बाद बच्चे की तबीयत बहुत खराब हो गई। खून की आवश्यकता पड़ रही थी। रिश्तेदार दूर-दूर तक नहीं दिखाई दिए। निर्मला बुआ फूफा जी को जैसे ही खबर मिली वे आ गए। उन्होंने चुपके से जाकर खून का सैंपल मिलवाया। बच्चे के खून से निर्मला का खून मैच कर गया। डॉक्टर ने तुरंत खून का इंतजाम कर लिया। बच्चा खतरे से बाहर हो गया। डॉक्टर ने कहा बच्चे की मां को कुछ समझाना है। अंदर आइए कौन है? उमा ने बिना कुछ सोचे समझे तुरंत कहा निर्मला है बच्चे की मां। डॉक्टर ने समझाकर केबिन से बाहर किया। निर्मला की आंखों में सारे जहां की खुशी और आंसू थे। उसकी गोद पर सुंदर बच्चा था और उमा कह रही थी “बच्चे का ध्यान रखिएगा, आप बहुत अच्छी मां है। हम सबको पता है इसका भी विशेष ध्यान रख सकती हैं।” कहकर उमा अस्पताल से बाहर चली गई।
© श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’
जबलपुर, मध्य प्रदेश