श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं सजग अग्रज साहित्यकार श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” जी  के साप्ताहिक स्तम्भ  “मनोज साहित्य ” में आज प्रस्तुत है दोहाश्रित सजल “युग बदले पर कभी न बदले… । आप प्रत्येक मंगलवार को आपकी भावप्रवण रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे।

✍ मनोज साहित्य # 27 – सजल – युग बदले पर कभी न बदले… 

समांत- आदा

पदांत- अपदांत

मात्राभार- 30

 

कट्टरता का ओढ़ लबादा।

खुद तो बने हुए हैं दादा ।।

 

दूर रहें पढ़ने-लिखने से, 

खुद को कहते हैं शहजादा।

 

नारी को समझे हैं दासी,

सारा अपना बोझा लादा।

 

कट्टरता जग का है दुश्मन,

मानवता का हुआ बुरादा।

 

युग बदले पर कभी न बदले,

तोड़ी हैं सारी मर्यादा।

 

छद्म वेश धरकर हैं चलते,

लड़ने को होते आमादा।

 

काट पतंगें सद्भावों की

रिपु दल का है बुरा इरादा।

 

मानवता कहती है जग में

रक्त बहे न करो यह वादा ।

 

लहू एक रंग हर प्राणी में ,

फिर क्यों होता धर्म तकादा ।

 

बड़े धुरंधर क्यों बनते हो,

मानव-धर्म ही* सीधा-सादा।

 

©  मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

30 अगस्त 2021

संपर्क – 58 आशीष दीप, उत्तर मिलोनीगंज जबलपुर (मध्य प्रदेश)-  482002

मो  94258 62550

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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