श्री अरुण श्रीवास्तव
(श्री अरुण श्रीवास्तव जी भारतीय स्टेट बैंक से वरिष्ठ सेवानिवृत्त अधिकारी हैं। बैंक की सेवाओं में अक्सर हमें सार्वजनिक एवं कार्यालयीन जीवन में कई लोगों से मिलना जुलना होता है। ऐसे में कोई संवेदनशील साहित्यकार ही उन चरित्रों को लेखनी से साकार कर सकता है। श्री अरुण श्रीवास्तव जी ने संभवतः अपने जीवन में ऐसे कई चरित्रों में से कुछ पात्र अपनी साहित्यिक रचनाओं में चुने होंगे। उन्होंने ऐसे ही कुछ पात्रों के इर्द गिर्द अपनी कथाओं का ताना बाना बुना है।)
☆ कथा कहानी # 26 – स्वर्ण पदक🥇 – भाग – 1 ☆ श्री अरुण श्रीवास्तव ☆
नलिन कांत बैंक की शाखा के वरिष्ठ बैंकर थे. याने सेवानिवृत्त पर आदरणीय. उन्हें मालुम था कि मान सम्मान मांगा नहीं जाता, भय से अगर मिले तो तब तक ही मिलता है जब तक पद का भय हो या फिर सम्मान देने वाले के मन में भय अभी तक विराजित हो. मेहनत और ईमानदारी से कमाया धन और व्यवहार से कमाया गया मान अक्षुण्ण रहता है, अपने साथ शुभता लेकर आता है. नलिनकांत जी ने ये सम्मान कमाया था अपने मधुर व्यवहार और मदद करने के स्वभाववश.
उनके दो पुत्र हैं स्वर्ण कांत और रजत कांत. नाम के पीछे उनका केशऑफीसर का लंबा कार्यकाल उत्तरदायी था जब इन्होने गोल्ड लोन स्वीकृति में अपनी इस धातु को परखने की दिव्यदृष्टि के कारण सफलता पाई थी और लोगों को उनकी आपदा में वक्त पर मदद की थी. उनकी दिव्यदृष्टि न केवल बहुमूल्य धातु के बल्कि लोन के हितग्राही की साख और विश्वसनीयता भी परखने में कामयाब रही थी.
बड़ा पुत्र स्वर्ण कांत मेधावी था और अपने पिता के सपनों, शिक्षकों के अनुमानों के अनुरूप ही हर परीक्षा में स्वर्ण पदक प्राप्त करता गया. पहले स्कूल, फिर महाविद्यालय और अंत में विश्वविद्यालय से वाणिज्य विषय में स्वर्ण पदक प्राप्त कर, अपनी शेष महत्वाकांक्षाओं को पिता को समर्पित कर एक राष्ट्रीयकृत बैंक में परिवीक्षाधीन अधिकारी याने प्राबेशनरी ऑफीसर के रूप में नियुक्ति प्राप्त कर सफलता पाई. बुद्धिमत्ता, शिक्षकों का शिक्षण, मार्गदर्शन और मां के आशीषों से मिली ये सफलता, अहंकार से संक्रमित होते होते सिर्फ खुद का पराक्रम बन गई.
क्रमशः …
© अरुण श्रीवास्तव
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