सौ. सुजाता काळे
(सौ. सुजाता काळे जी मराठी एवं हिन्दी की काव्य एवं गद्य विधा की सशक्त हस्ताक्षर हैं । वे महाराष्ट्र के प्रसिद्ध पर्यटन स्थल कोहरे के आँचल – पंचगनी से ताल्लुक रखती हैं। उनके साहित्य में मानवीय संवेदनाओं के साथ प्रकृतिक सौन्दर्य की छवि स्पष्ट दिखाई देती है। आज प्रस्तुत है सौ. सुजाता काळे जी की एक भावप्रवण कविता “इस जहाँ में “।)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कोहरे के आँचल से # 11 ☆
मुकद्दर लिखने वाले
इस जहाँ में कमी नहीं है
बेकस (अकेला) रूलाने वालों की।
जहाँ में बेमुकम्मल बनाया
कोई गम न था।
इस जहाँ में कमी नहीं है
गुमराह करने वालों की ।
फितरत-ए- फरेब का
कदम कदम पर जाल
आलिम (विद्वान) कोई नहीं है
पहचानने के लिए ।
परवाना जला करता था
इश्क -ए- रोशनी की लौ में
बेखुद जला रहा है
गुलशन-ए-इश्क को।
डूबते हैं लोग रोज
खयालों के पियालों में
जो बूँदों से महकते हैं
उन्हें किनारा नहीं मिलता।
पंचगनी, महाराष्ट्रा।
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