प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
(आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी द्वारा रचित एक भावप्रवण ग़ज़ल “खुद से भी शायद ज्यादा…”। हमारे प्रबुद्ध पाठक गण प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे। )
☆ काव्य धारा 78 ☆ गजल – खुद से भी शायद ज्यादा… ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆
मेरे साथ तुम जो होते, न मैं बेकरार होता,
खुद से भी शायद ज्यादा, मुझे तुमसे प्यार होता।
तुम बिन उदास मेरी मायूस जिन्दगी है,
होते जो पास तुम तो क्यों इन्तजार होता ?
मजबूरियाँ तुम्हारी तुम्हें दूर ले गईं हैं,
वरना खुशी का हर दिन एक तैवहार होता।
मुह मांगी चाह सबको मिलती कहाँ यहाँ है ?
मिलती जो, कोई सपना क्यों तार-तार होता ?
हँसने के वास्ते कुछ रोना है लाजिमी सा,
होता न चलन ये तो दिल पै न भार होता।
मुझको जो मिले होते मुस्कान लिये तुम तो,
इस जिन्दगी में जाने कितना खुमार होता।
आ जाते जिन्दगी में मेरे राजदार बन जो,
सपनों की झाँकियों का बढ़िया सिंगार होता।
हर रात रातरानी खुशबू बिखेर जाती,
हर दिन आलाप भरता सरगम-सितार होता।
तकदीर है कि ’यादों’ में आते तो तुम चुप हो,
पर काश कि किस्मत में कोई सुधार होता।।
© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
ए २३३ , ओल्ड मीनाल रेजीडेंसी भोपाल ४६२०२३
मो. 9425484452
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈