(हम प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’जी के आभारी हैं जिन्होने साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक की पुस्तक चर्चा” शीर्षक से यह स्तम्भ लिखने का आग्रह स्वीकारा। श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, मुख्यअभियंता सिविल (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी, जबलपुर ) पद से सेवानिवृत्त हुए हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है। उनका पारिवारिक जीवन एवं साहित्य में अद्भुत सामंजस्य अनुकरणीय है। इस स्तम्भ के अंतर्गत हम उनके द्वारा की गई पुस्तक समीक्षाएं/पुस्तक चर्चा आप तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं।
आज प्रस्तुत है सुश्री सुधा कुमारी जी की पुस्तक “रुपये का भ्रमण पैकेज” की समीक्षा।
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक की पुस्तक चर्चा# 111 ☆
☆ “रुपये का भ्रमण पैकेज” … सुश्री सुधा कुमारी जी ☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ☆
रुपये का भ्रमण पैकेज
लेखिका.. सुधा कुमारी
पृष्ठ १७२,सजिल्द मूल्य ३५० रु
प्रभात प्रकाशन, नई दिल्ली
बीरबल या तेनालीराम जैसे ज्ञानी सत्ता में राजा के सर्वाधिक निकट रहते हुये भी राजा की गलतियों को अपनी बुद्धिमानी से इंगित करने के दुस्साहसी प्रयास करते रहे हैं. इस प्रयोजन के लिये उन्होने जिस विधा को अपना अस्त्र बनाया वह व्यंग्य संमिश्रित हास्य ही था. दरअसल अमिधा की सीधी मार की अपेक्षा हास्य व्यंग्य में कही गई लाक्षणिक बात को इशारों में समझकर सुधार का पर्याप्त अवसर होता है, और यदि सच को देखकर भी तमाम बेशर्मी से अनदेखा ही करना हो तो भी राजा को बच निकलने के लिये बीरबलों या तेनालीरामों की विदूषक छबि के चलते उनकी कही बात को इग्नोर करने का रास्ता रहता ही है. लोकतंत्र ने राजनेताओ को असाधारण अधिकार प्रदान किये हैं, किन्तु अधिकांश राजनेता उन्हें पाकर निरंकुश स्वार्थी व्यवहार करते दिख रहे हैं. यही कारण है कि हास्य व्यंग्य आज अभिव्यक्ति का सशक्त माध्यम है. सुधाकुमारी जी जैसे जो बीरबल या तेनालीराम अपने परिवेश में देखते हैं कि राज अन्याय हो रहा है, वे चुपचाप व्यंग्य लेख के जरिये आईना दिखाने का अपना काम करते दिखते हैं. ये और बात है कि अधिकांशतः उनकी ये चिंता अखबारों के संपादकीय पन्नो पर किसी कालम में कैद या किसी पुस्तक के पन्नो में फड़फड़ाती रह जाती है. बेशर्म राजा और समाज उसे हंसकर टालने में निपुण होता जा रहा है. किन्तु इससे आज के इन कबीरों के हौसले कम नहीं होते वे परसाई,शरद, त्यागी और श्रीलाल शुक्ल के मार्ग पर बढ़े जा रहे हैं, सुधा कुमारी जी भी उसी बढ़ते कारवां में रुपये का भ्रमण पैकेज लेकर आज चर्चा में हैं.
“स्थानांतरण का ईश्वरीय आदेश” में वे सरकारी कर्मचारियों की ट्रांसफर नीतीयो पर पठनीय कटाक्ष करती हैं, उन्होने स्वयं भी खूब पढ़ा गुना है तभी तो व्यंग्य में यथा स्थान काव्य पंक्तियो का प्रयोग कर रोचक प्रवाही शैली में लिख सकी हैं. इसी शैली का एक और सार्थक व्यंग्य ” बेचारा” भी किताब में है. “ओम पत्रकाराय नमः” में वे लिखती हैं ” आप ही देश चलाते हो, प्रशासन की खिंचाईकरते हो, कानून भी आपके न्यूजरूम में बन सकते हैं और न्याय भी आप खुद करते हो, खुद ही अभियोजन करते हो खुद ही फैसला सुनाते हो “… हममें से जिनने भी शाम की टी वी बहस सुनी हैं, वे सब इस व्यंग्य के मजे ले सकते हैं. ” अथ ड्युटी पार्लर कथा, बासमैनेजमेंट इंस्टीट्यूत, असेसमेंट आर्डर की आत्मकथा, सूचना अधिकार…अलादीन का चिराग, मखान सर शिक्षण संस्थान इत्यादि उनके कार्यालाय के इर्द गिर्द से उनके वैचारिक अंतर्द्वंद जनित रचनायें हैं, जिन्हें लिखकर उन्होने आत्म संतोष अनुभव किया होगा. कुछ रचनायें कोरोना की वैश्विक त्रासदी की विसंगतियों से उपजी हैं. और प्रजातंत्र की उलटबासियां, चुनावी दंगल, प्रजातांत्रिक पंचतंत्र,, नेताजी पर लेख जैसी रचनायें अखबार या टीवी पढ़ते देखते हुये उपजी हैं. चुंकि सुढ़ाकुमारी जी का संस्कृत तथा अंग्रेजी साहित्य का गहन अध्ययन है अतः उनके बिम्ब और रूपक मेघदूत, यक्षिणी, पीटर पैन, सोलोमन का न्याय के गिर्द भी बनते हैं. “चिंतन के लिये चारा” पुस्तक का सबसे छोटा व्यंग्य लेख है, पर मारक है…एक मरियल देसी गाय और एक बिहार की जर्सी गाय का परस्पर संवाद पढ़िये, इशारे सहज समझ जायेंगे… ” उन्हें विशेष प्रकार का चारा खिलाया गया , जो सामान्य आंखों से नही दिखता था, वह सिर्फ बिल और व्हाउचर में दिखाई देता था….
किताब के शीर्षक व्यंग्य रुपये का भ्रमण पैकेज से उधृत करता हूं… कुछ लोगों को रुपया हाथ का मैल लगता है पर अधिकतर को पिता और भाई से भी बड़ा रुपैया लगता है….. एडवांस्ड्ड मिड कैरियर ट्रैवल प्रोग्राम, प्रायः सरकारी अफसरो की तफरी के प्रयोजन बनते हैं उस पर तीक्ष्ण प्रहार किया है सुधा जी ने. “रिची रिच टू मैंगो रिपब्लिक” रुपये के देशी भ्रमण पैकेज के जरिये वे सरकारी अनुदान योजनाओ पर प्रहार करती हैं., उन्होंने तीसरा पैकेज ठग्स एंड क्रुक्स कम्पनी डाट काम के नाम पर परिकल्पित किया है.
कुल मिलाकर सुधा जी की लेखनी से निसृत व्यंग्य लेख उनकी परिपक्व वैचारिक अभिव्यक्ति प्रदर्शित करते हैं. व्यंग्य जगत को उनसे निरंतरता की उम्मीद है. मेरी कामना है कि उनका अनुभव केनवास और भी व्यापक हो तथा वे कुछ शाश्वत लिखें. यह किताब बढ़िया है, खरीदकर पढ़ना और पढ़ने में समय लगाना घाटे का सौदा नही लगेगा, इसकी गारंटी दे सकता हूं.
© विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’
मो ७०००३७५७९८
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈