डॉ राजकुमार तिवारी ‘सुमित्र’
(संस्कारधानी जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ. राजकुमार “सुमित्र” जी को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया। वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणा स्त्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं आपके अप्रतिम कालजयी दोहे।)
साप्ताहिक स्तम्भ – लेखनी सुमित्र की # 88 – दोहे
प्रश्न प्रेम का जब उठे, उग जाता संदेह।
अशरीरी यदि प्रेम तो, किस मतलब की देह।।
परिभाषा दें प्रेम की, किसकी है औकात।
कभी मरुस्थल सा लगे कभी चांदनी रात।।
मन में प्रतिक्षण उमड़ते, इतने इतने भाव।
एक लहर पर दूसरी रचती नए रचाओ।।
प्रेम तत्व गहरा गहन, जिसका आर न पार।
शब्दों से भी है परे, अर्थों का विस्तार।।
परिभाषा क्या प्रेम की, सभी हुए असमर्थ ।
प्रेम प्रेम है प्रेम का यही हुआ बस अर्थ।।
© डॉ राजकुमार “सुमित्र”
112 सर्राफा वार्ड, सिटी कोतवाली के पीछे चुन्नीलाल का बाड़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈
वाह
बेहतरीन अभिव्यक्ति