डॉ भावना शुक्ल
(डॉ भावना शुक्ल जी (सह संपादक ‘प्राची‘) को जो कुछ साहित्यिक विरासत में मिला है उसे उन्होने मात्र सँजोया ही नहीं अपितु , उस विरासत को गति प्रदान किया है। हम ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि माँ सरस्वती का वरद हस्त उन पर ऐसा ही बना रहे। आज प्रस्तुत हैं “भावना के दोहे”।)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 134 – साहित्य निकुंज ☆
☆ भावना के दोहे ☆
मन से मन तो मिल रहा, ओ प्यारे मनमीत।
मन ही मन में गूंजता, तेरा अपना गीत।।
मिलते ही मन मिल गए, ओ प्यारे मनमीत।
सांस सांस में बज उठा, प्रेम प्यार का गीत।।
पारिजात के वृक्ष का, होता ही उपयोग।
योगी सदा बता रहे, इसका योग प्रयोग।।
बारिश होती झूमकर, झरने लगे प्रपात।
मिलते ही आनंद में, खुश होती बरसात।।
गरमी कैसी बढ़ रही, उगल रही अंगार।
धरती व्याकुल हो रही, कर दो अब उद्धार।।
© डॉ भावना शुक्ल
सहसंपादक… प्राची
प्रतीक लॉरेल, J-1504, नोएडा सेक्टर – 120, नोएडा (यू.पी )- 201307
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈