श्री अरुण श्रीवास्तव

(श्री अरुण श्रीवास्तव जी भारतीय स्टेट बैंक से वरिष्ठ सेवानिवृत्त अधिकारी हैं। बैंक की सेवाओं में अक्सर हमें सार्वजनिक एवं कार्यालयीन जीवन में कई लोगों से मिलना  जुलना होता है। ऐसे में कोई संवेदनशील साहित्यकार ही उन चरित्रों को लेखनी से साकार कर सकता है। श्री अरुण श्रीवास्तव जी ने संभवतः अपने जीवन में ऐसे कई चरित्रों में से कुछ पात्र अपनी साहित्यिक रचनाओं में चुने होंगे। उन्होंने ऐसे ही कुछ पात्रों के इर्द गिर्द अपनी कथाओं का ताना बाना बुना है। प्रस्तुत है आपके कांकेर पदस्थापना के दौरान प्राप्त अनुभवों एवं परिकल्पना  में उपजे पात्र पर आधारित श्रृंखला “आत्मलोचन “।)   

☆ कथा कहानी # 35 – आत्मलोचन– भाग – 5 ☆ श्री अरुण श्रीवास्तव 

(“इस कहानी के सभी पात्र और घटनाए काल्पनिक है, इसका किसी भी व्यक्ति या घटना से कोई संबंध नहीं है। यदि किसी व्यक्ति से इसकी समानता होती है, तो उसे मात्र एक संयोग कहा जाएगा।”)

अगले कुछ महीने न जाने क्यों पर आत्मलोचन ने बड़े तनाव में गुजारे, छोटी छोटी बातों पर भड़क जाने की आदत ऑफिस का माहौल गंभीर बना दे रही थी, वित्तीय वर्ष का बज़ट फंड लेप्स होने पर प्रिसिंपल सेक्रेटरी नाराज होते रहते थे.दुर्गम नक्सली क्षेत्र में योजनाओं के अंतर्गत काम होना शासन की इच्छा पर कम नक्सलियों के मूड पर ज्यादा निर्भर होता था, काम करने वाले वही कांट्रेक्टर सफल हो पा रहे थे जिनके नक्सलियों से वाणिज्यिक संबंध थे अन्यथा विकास कार्यों को बाधित करना उनके जनांदोलन का ही एक अंग था. आये दिन रास्ता बंद करना, उनकी सूचना देने वाले पुलिस के खबरियों का सिर काटकर बॉडी सड़क पर डाल देना उनके आंदोलन और शक्ति प्रदर्शन का एक हिस्सा था. मुख्य सचिव और मुख्यमंत्री बहुत संवेदनशील और सक्रिय थे जो चाहते थे कि इस समस्या को शासन एड्रेस करे और उनकी अपेक्षा, युवा सिविल सर्विस के अधिकारियों से बहुत ज्यादा थी. हर परफारमेंस रिव्यू में ये लोग चाहते थे कि ये युवा जिलाधीश इनोवेटिव और सशक्त निर्णयों से राज्य के विकास को गतिशील करें राज्य में हर वर्ष की तरह इस बार भी ग्रामसुराज अभियान 14 अप्रैल से प्रारंभ हुआ और आत्मलोचन जी ने जिले के नक्सली प्रभावित दुर्गम क्षेत्र में जिले के विकास से संबंधित अधिकारियों के साथ कैंप लगाने का निश्चय किया ताकि क्षेत्र के निर्धन निर्बल आदिवासियों और जिलास्तर के शासनतंत्र के बीच संवाद स्थापित किया जा सके और शासकीय योजनाओं के माध्यम से उनके सर्वागीण  विकास को दिशा दी जा सके और जनसमस्याओं के निवारण की पहल की जा सके.तिथि निर्धारित होने पर सूचना हर माध्यम से हर संबंधित व्यक्ति, संस्था और प्रिंसिपल सचिव स्तर के अधिकारियों को दी गई ताकि लोग इस कैंप में भाग ले सकें.इस कदम से मुख्य सचिव और मुख्य मंत्री प्रभावित हुये. पर एक बात और हुई, उन्हीं पूर्व मुख्यमंत्री का फोन फिर आया कि उन्हें उनके नेटवर्क के माध्यम से जिले में कोई बड़ी घटना होने की पूर्वसूचना मिली है पर समय दिन व स्थान की विस्तृत जानकारी नहीं है पर फिर भी सतर्क और सावधान रहने की सलाह  दी गई. कैंप की मॉनीटरिंग और निर्देशों में उलझकर कलेक्टर साहब ये चेतावनी नज़रअंदाज कर गये और नियत तिथि पर कैंप सदलबल प्रस्थान कर गये. आवश्यक और अपरिहार्य सुरक्षा बल साथ चल रहा था. ठीक दिन के 11बजे कार्यक्रम प्रारंभ हुआ और उपस्थित ग्रामीणों के बीच शासकीय योजनाओं के प्रचार माध्यम से संवाद प्रारंभ हुआ. प्रारंभिक भाषणों के बीच जैसे ही आत्मलोचन जी मंच की ओर बढ़े, अचानक ही लगभग सौ डेढ़ सौ वर्दीधारी युवक मंच की ओर बढ़े और इसके पहले की कोई समझ पाता, उन्होंने कलेक्टर के पर्सनल सिक्यूरिटी गार्ड को शूट कर आत्मलोचन जी को अपने कवर में ले लिया और सुरक्षा बल इस अचानक हमले से स्तब्ध हो गया, कुछ करने की गुजांइश वैसे भी नहीं बची थी क्योंकि देखते देखते ही आठ दस नक्सली उन्हें घेरकर बाहर गाड़ी में बिठाकर आगे बढ़ गये और सुरक्षा बल, नक्सलियो के बाद में किये बम विस्फोट में समझ नहीं पाये कि यहां कितनी गंभीर घटना घट चुकी है. एक तरफ आत्मलोचन जी अज्ञात स्थान की ओर ले जाये जा रहे थे वहीं इस अभूतपूर्व घटना की खबर से संभागीय मुख्यालय और राजधानी में हड़कंप मच गया. मीडिया ने राष्ट्रीय राजधानी  तक सत्ताधीशों को झकझोर कर रख दिया. इस तरह की ये शायद पहली घटना थी. समाधान करने के लिए देश- प्रदेश के संचार तंत्र एक हो गये और नक्सली क्षेत्र के विशेषज्ञ वरिष्ठ और सेवानिवृत्त अधिकारियों के माध्यम से इस कार्य में संलग्न प्रमुख नक्सली नेताओं से बातचीत के रास्ते कुछ देर से ही सही पर बहुत प्रयास के बाद खुल ही गये.

वहीं कथा के नायक का हाल क्या हुआ यह जानने के लिए कुछ समय और दीजिए, अगली एक या दो किश्तों में क्लाइमेक्स आपके सामने होगा.

बहुत परिश्रम से कहानी तैयार हुई है और धन्यवाद उन सभी मित्रों को जिनके लगातार प्रोत्साहन से उम्मीद से बढ़कर यहां तक का सफर तय हो गया.

क्रमशः…

© अरुण श्रीवास्तव

संपर्क – 301,अमृत अपार्टमेंट, नर्मदा रोड जबलपुर

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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