डॉ राजकुमार तिवारी ‘सुमित्र’
(संस्कारधानी जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ. राजकुमार “सुमित्र” जी को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया। वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणा स्त्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं आपका एक अप्रतिम गीत – गीतों का यह गुलाब जल…।)
साप्ताहिक स्तम्भ – लेखनी सुमित्र की # 93 – गीत – गीतों का यह गुलाब जल…
लो !यह
गीतों का गुलाब जल को अपने मन पर।
वैसे तुम खुशबू की बेटी रूपगंध से भरा खजाना
पर कस्तूरी पास रखी है ब्राह्मण ने यह कभी न जाना।
तुम्हें बताऊँ तुममें क्या है, सुधा सिंधु जियो नील गगन पर।
तुम्हें कौन सा संबोधन हूं वह मेरी साधों की सीता
चंद्रप्रिया कह तुम्हें पुकारूँ
गायत्री गीतों की गीता
अनगिन चित्र उभरते रहते, कभी नजर डालो मन घन पर।
तुम्हें देख संकोच सिहरता संयम, नियम बना लेता है
मेरे जैसा सन्यासी भी
गीत रूप के गा देता है
आखिर ऐसा क्यों होता है,
कभी नजर डालो जीवन पर।
लो ! यह
गीतों का गुलाब जल छिड़को अपने मन पर।
© डॉ राजकुमार “सुमित्र”
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