श्री अरुण श्रीवास्तव

(श्री अरुण श्रीवास्तव जी भारतीय स्टेट बैंक से वरिष्ठ सेवानिवृत्त अधिकारी हैं। बैंक की सेवाओं में अक्सर हमें सार्वजनिक एवं कार्यालयीन जीवन में कई लोगों से मिलना  जुलना होता है। ऐसे में कोई संवेदनशील साहित्यकार ही उन चरित्रों को लेखनी से साकार कर सकता है। श्री अरुण श्रीवास्तव जी ने संभवतः अपने जीवन में ऐसे कई चरित्रों में से कुछ पात्र अपनी साहित्यिक रचनाओं में चुने होंगे। उन्होंने ऐसे ही कुछ पात्रों के इर्द गिर्द अपनी कथाओं का ताना बाना बुना है। प्रस्तुत है अनुभवों एवं परिकल्पना  में उपजे पात्र संतोषी जी पर आधारित श्रृंखला “जन्मदिवस“।)   

☆ कथा कहानी # 37 – जन्मदिवस – भाग – 1 ☆ श्री अरुण श्रीवास्तव 

शाखा के मुख्य प्रबंधक जब सुबह 9:30 पर शाखा पहुंचे तो थकान महसूस कर रहे थे. लगातार बढ़ता काम का बोझ,लक्ष्य की चुनौतियां, लोगों की शिकायतें जिसमें नियंत्रक महोदय, स्टाफ और महत्वपूर्ण ग्राहक और उनका परिवार सभी पक्ष शामिल थे,उनके तनाव को दिन प्रतिदिन बढ़ा रहे थे.उन्हें इक्के दुक्के व्यक्ति ही समझ पाते थे और अपनी तरफ से उनका तनाव हल्का करने की कोशिश करते रहते थे. परम संतोषी जी जब भी उनके चैंबर में आते, उनका तनाव कम हो जाता है ये वे समझने लगे थे. संतोषी जी का फिकर नॉट एटीट्यूड और मजाकिया स्वभाव उनके तपते मनोभावों पर राहत की ठंडी बारिश करता था और वे ये भूल जाते थे कि वे उनके भी बॉस हैं. इसके दो कारण थे, पहला तो यह कि वे बैंकिंग विषय पर उनसे कोई अपेक्षा नहीं पालते थे और न ही संतोषी जी की कोई डिमांड होती थी. और दूसरा उनका यह विश्वास कि संतोषी जी हमेशा ऑउट ऑफ आर्डर मदद करने में स्पेशलिस्ट हैं.

आज वे इस उम्मीद के साथ शाखा में पहुंचे थे कि शाखा शुरु होने के पहले और नियंत्रक कार्यालय के टेलीफोनिक व्यवधान शुरु हो इसके पहले भी, संतोषी जी के साथ कुछ हल्के फुल्के क्षणों का आनंद लेकर फिर अपनी बैंकिंग दिनचर्या आरंभ करें. पर शाखा पहुंचने पर हमेशा की भांति संतोषी जी की मौजूदगी और गुडमार्निंग नदारद थी. हॉल में आम दिनों से अलग एक नये किस्म की महसूस की जा रही आतुरता और किसी के इंतजार में स्टाफ, जो इस कदर मगन था कि उन्हें भी नजर अंदाज कर गया.

यद्यपि मुख्य प्रबंधक महोदय का अंतरमुखी व्यक्तित्व इसे पसंद करता था और उनका भरसक प्रयास यही होता था कि कम से कम लोगों का सामना हो और वे अपने कक्ष में व्यवधान रहित और सुरक्षित प्रवेश कर जायें. ऐसा आज भी हुआ पर स्टाफ की व्यग्रता वे अपने चैंबर की कांच की दीवारों के पार भी महसूस कर रहे थे. कुछ कुछ या सब कुछ जानने की उत्कंठा उनके अंदर भी पैदा हो रही थी. अचानक ही शाखा के मुख्य द्वार पर चहल पहल बढ़ी जो ग्राहकों की भीड़ जैसी नहीं थी बल्कि सारा स्टाफ के, लकदक क्रीम कलर के सफारी सूट में सजे आगंतुक की ओर स्वागत और हर्षोल्लास के साथ बढ़ने के कारण थी. “हैप्पी बर्थडे सर जी और जन्मदिन मुबारक की करतल ध्वनि के साथ शाखा में प्रवेश करने वाले सज्जन हरदिल अजीज परम संतोषी साहब ही थे जिनके हाथ में भारी भरकम मिष्ठान के पैकेट्स थे. प्रोटोकॉल को भूलकर और सुखद आश्चर्य से अभिभूत मुख्य प्रबंधक भी अपने स्वभाव को “refer to drawer” करते हूये अनायास ही बाहर खिंचे चले आये. पर वरिष्ठता को सम्मान और संस्कार को भूलना संतोषी जी ने नहीं सीखा था तो पैकेट्स पास में टेबल पर रखकर तुरंत उनकी ओर आगे बढ़कर शुभप्रभात कहा.जवाब में “जन्मदिन की बहुत बहुत बधाई” मिली और साथ ही बैंकिंग हॉल जन्मदिन की शुभकामनाओं से गूंजने लगा. वे स्टाफ से गले मिल रहे थे और स्टाफ उन पर शुभकामनाओं की बारिश कर रहा था.इस अभूतपूर्व उत्साह ने उम्र और पदों की दूरियों को आत्मसात कर लिया था और कस्टमर्स भी अपना काम भूलकर इस नयनाभिराम दृश्य का आनंद ले रहे थे. ये वो चमत्कार था जो कभी कभार ही नज़र आता था. इस मुलाकात के बाद, शाखा में परम संतोषी जी ने सबसे पहले हनुमान जी को प्रसाद चढ़ाया और फिर शाखा में उपस्थित समस्त स्टाफ और ग्राहकों का खुद मिलकर मुंह मीठा करना शुरु किया. शाखा की युवावाहिनी ने इस जश्ने जन्मदिन को अपने तरीक़े से सेलीब्रेट करने की डिमांड रख दी जो उन्होंने बड़ी ही कुशलतापूर्वक अगले दिन के लिए स्थगित कर दिया.

इन पार्टियों का इंतजार, इन्हें और मादक बना देता है और सारे सुराप्रेमी, कल्पनाओं में ही झूमने लगे जिस पर ब्रेक लगाया मुख्य प्रबंधक जी ने यह कहकर कि अभी तो बैंक का काम शुरू करिये, शाम की चाय के साथ मीटिंग हॉल में संतोषी जी का जन्मदिन मनायेंगे.

शाम का इंतजार कीजिये.

© अरुण श्रीवास्तव

संपर्क – 301,अमृत अपार्टमेंट, नर्मदा रोड जबलपुर

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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