श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’
(सुप्रसिद्ध वरिष्ठ साहित्यकार श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी अर्ध शताधिक अलंकरणों /सम्मानों से अलंकृत/सम्मानित हैं। आपकी लघुकथा “रात का चौकीदार” महाराष्ट्र शासन के शैक्षणिक पाठ्यक्रम कक्षा 9वीं की “हिंदी लोक भारती” पाठ्यपुस्तक में सम्मिलित। आप हमारे प्रबुद्ध पाठकों के साथ समय-समय पर अपनी अप्रतिम रचनाएँ साझा करते रहते हैं। आज प्रस्तुत है एक भावप्रवण एवं विचारणीय कविता “दरवाजे… ”।)
☆ तन्मय साहित्य # 137 ☆
☆ कविता – दरवाजे… ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ ☆
आते जाते नजर मिलाते ये दरवाजे
प्रहरी बन निश्चिंत कराते ये दरवाजे।
घर से बाहर जब जाएँ तो गुमसुम गुमसुम
वापस लौटें तो मुस्काते ये दरवाजे।
कुन्दे में ताले से इसे बंद जब करते
नथनी नाक में ज्यों लटकाते ये दरवाजे।
पर्व, तीज, त्योहारों पर जब तोरण टाँगें
गर्वित हो मन ही मन हर्षाते दरवाजे।
प्रथम देहरी पूजें पावन कामों में जब
बड़े भाग्य पाकर इतराते ये दरवाजे।
बच्चे खेलें, आगे – पीछे इसे झुलायें
चाँ..चिं. चूं. करते, किलकाते ये दरवाजे।
बारिश में जब फैल -फूल अपनी पर आए
सब को नानी याद कराते ये दरवाजे।
मंदिर पर ज्यों कलश, मुकुट राजा का सोहे
वैसे घर की शान बढ़ाते ये दरवाजे।
विविध कलाकृतियाँ, नक्काशी, रूप चितेरे
हमें चैन की नींद सुलाते ये दरवाजे।
© सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’
अलीगढ़/भोपाल
मो. 9893266014
≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈