श्रीमती  सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’

(संस्कारधानी जबलपुर की श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’ जी की लघुकथाओं, कविता /गीत का अपना संसार है। साप्ताहिक स्तम्भ – श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य  शृंखला में आज प्रस्तुत है स्त्री विमर्श पर आधारित सामाजिक-राजनीतिक व्यवस्था पर प्रश्न चिन्ह लगाती सशक्त लघुकथा  चुनावी कशमकश ”। ) 

☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी जी  का साहित्य # 128 ☆

☆ लघुकथा – चुनावी कशमकश

गाँव में चुनाव का माहौल बना हुआ था। घर- घर जाकर प्रत्याशी अपनी-अपनी योजना और लाभ का विवरण दे रहे थे।

चुनाव कार्यालय से लगा हुआ छोटा सा मकान जिसमें अपने माता-पिता के साथ रूपा रहती थी। घर की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी। चाह कर भी रूपा पढ़ाई नहीं कर सकी। लेकिन सिलाई का कोर्स पूरा कर पूरे घर का खर्च चलाती थी।

माँ बेचारी दिहाड़ी मजदूरी का काम करती थी और पिताजी पैर से लाचार होने के कारण ज्यादा कुछ नहीं कर पाते परंतु अपना स्वयं का खर्च किसी तरह काम करके निकाल लेते थे।

चुनाव के झंडे, बैनर सिलने के लिए रूपा को दिया गया। रूपा ने बहुत ही सुंदर सिलाई कर प्रत्याशी को देने के लिए कार्यालय पहुंची।

रूपा की सुंदरता और युवावस्था को देखते ही युवा प्रत्याशी की आह निकल गयी। उसे सहायता करने के लिए आश्वासन दिया।

सहज सरल रूपा विश्वास कर घर आ गई। शाम का समय बारिश का मौसम, बिजली का चमकना, और तेज गर्जन के साथ, पानी बरस रहा था। दरवाजे पर आहट हुई, रूपा ने हाथ में टार्च लिया और दरवाजे खोल कर देखने लगी।

युवा प्रत्याशी लगभग भींगा हुआ और हाथों में कुछ बैनर रूपा को देकर कहने लगा….. “इसे अभी अर्जेंट ही तैयार करना है।”

रूपा ने हाँ में सिर हिला कर दरवाजे से अंदर आने को कहा। अपने काम में लग गई।

सिगरेट का कश खींचते हुए प्रत्याशी जाने कब रूपा को मदहोश कर गया। समझ ना सकी। माता-पिता दूसरे कमरे में आराम कर रहे थें।

उन्हें लगा नेता जी बहुत अच्छे इंसान हैं, जो हमारी सहायता के लिए कपड़े लेकर आए हैं।

“अब मेरा क्या होगा?” …. रूपा ने प्रश्न किया? “चुनाव के बाद मैं तुम्हें अपना लूंगा। तुम किसी से चर्चा नहीं करना।”

“मेरी सारी मेहनत बेकार हो जाएगी। मैं वचन देता हूं तुम्हें किसी प्रकार की कोई कमी नहीं होने दूंगा।”

युवा प्रत्याशी चलता बना। रूपा कभी हाथ में ढेंर सारे नोट को देखती और कभी बैनर पर लिपटी अपने आप को।

आज  पाँच  साल बाद माता – पिता तो नहीं रहे। रूपा बैनर झंडे फिर से बना रही थीं। साथ में उसका छोटा सा बच्चा तोतली भाषा में ‘नेताजी जिंदाबाद’ के नारे लगा रहा था।

© श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’

जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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