श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’
(सुप्रसिद्ध वरिष्ठ साहित्यकार श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी अर्ध शताधिक अलंकरणों /सम्मानों से अलंकृत/सम्मानित हैं। आपकी लघुकथा “रात का चौकीदार” महाराष्ट्र शासन के शैक्षणिक पाठ्यक्रम कक्षा 9वीं की “हिंदी लोक भारती” पाठ्यपुस्तक में सम्मिलित। आप हमारे प्रबुद्ध पाठकों के साथ समय-समय पर अपनी अप्रतिम रचनाएँ साझा करते रहते हैं। आज प्रस्तुत है एक भावप्रवण एवं विचारणीय “तन्मय दोहे… ”।)
☆ तन्मय साहित्य # 138 ☆
☆ तन्मय दोहे… ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ ☆
लगा रहे हैं कहकहे, कर के वे दातौन।
दंतहीन बापू खड़े, सकुचाहट में मौन।।
मोहपाश में है घिरा , अर्जुन सा जनतंत्र।
कौरव दल के बढ़ रहे, मायावी षडयंत्र।।
बदल रही हैं बोलियां, बदल रहे हैं ढंग।
बौराये से सब लगें, ज्यों खाएँ हो भंग।।
ठहर गई है जिंदगी, नहीं पक्ष में वोट।
रुके पाँव उम्मीद के, अपनों से ही चोट।।
भूल गए सरकार जी, आना मेरे गाँव।
छीन ले गए साथ में, मेल-जोल की छाँव।।
शकुनि – से पाँसे चले, ये सरकारी लोग।
तब-तक खुश होते नहीं, जब-तक चढ़े न भोग।।
© सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’
अलीगढ़/भोपाल
मो. 9893266014
≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈