कविता – आभास दायिनी है बिजली !
शक्ति स्वरूपा, चपल चंचला, दीप्ति स्वामिनी है बिजली ,
निराकार पर सर्व व्याप्त है, आभास दायिनी है बिजली !
मेघ प्रिया की गगन गर्जना, क्षितिज छोर से नभ तक है,
वर्षा ॠतु में प्रबल प्रकाशित, तड़ित प्रवाहिनी है बिजली !
क्षण भर में ही कर उजियारा, अंधकार को विगलित करती ,
हर पल बनती, तिल तिल जलती, तीव्र गामिनी है बिजली !
कभी उजाला, कभी ताप तो, कभी मशीनों का ईंधन बन जाती है,
रूप बदल, सेवा में तत्पर, हर पल हाजिर है बिजली !
सावधान ! चोरी से इसकी, छूने से भी, दुर्घटना घट सकती है ,
मितव्ययिता से सदुपयोग हो, माँग अधिक, कम है बिजली !
गिरे अगर दिल पर दामिनि तो, सचमुच, बचना मुश्किल है,
प्रिये हमारी ! हम घायल हैं, कातिल हो तुम, अदा तुम्हारी है बिजली !
सर्वधर्म समभाव सिखाये, छुआछूत से परे तार से, घर घर जोड़े ,
एक देश है ज्यों शरीर और, तार नसों से , रक्त वाहिनी है बिजली !!
© विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’
ए २३३, ओल्ड मीनाल रेसीडेंसी, भोपाल, ४६२०२३
मो ७०००३७५७९८
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈