डॉ राजकुमार तिवारी ‘सुमित्र’
(संस्कारधानी जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ. राजकुमार “सुमित्र” जी को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया। वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणा स्त्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं आपका एक अप्रतिम गीत – शायद याद किया तुमने…।)
साप्ताहिक स्तम्भ – लेखनी सुमित्र की # 94 – गीत – शायद याद किया तुमने…
शायद याद किया है तुमने कांटे लगे महकने।
खिड़की खुली बजे दरवाजे हवा ठुमकती आई ।
बादल लगा डाकिया जैसा लाया बूँद बधाई।
आँखें ऐसी हुई कि जैसे पंछी लगें चहकने ।
विकल हुई थी मन की धरती बातों बात जुड़ानी
होने लगी ख्वाब की खेती मिला याद का पानी ।
शायद याद किया है तुमने पीड़ा लगी सरसने।
शायद याद किया है तुमने काँटे लगे महकने।
© डॉ राजकुमार “सुमित्र”
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