श्रीमती सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’
(संस्कारधानी जबलपुर की श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’ जी की लघुकथाओं, कविता /गीत का अपना संसार है। साप्ताहिक स्तम्भ – श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य शृंखला में आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण कविता “आलिंगन”।)
☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य # 130 ☆
☆ कविता ☆ आलिंगन 🌨️🌿☆
बादल भी करते हैं बातें,
बरस- बरस कर काटी रातें।
चौपालों में बैठ के जोगी,
गीत मल्हार प्रेम से गाते।।
देख धरा की व्याकुल तपन,
लिए नैनों में अनेक सपन।
आलिंगन करने को आतुर,
बांहें फैलाए बादल आते।।
पंछी अब जोड़े हैं तिनका,
माला फेरते जोगी मनका।
महल अटारी खूब बनाया,
ये जीवन हैं चार दिनों का।।
धरा भी अब तो डोल रही,
मानवता अब नहीं कहीं।
असत्य का बोलबाला,
सत्य कहीं दिखता नहीं।।
© श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈