श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”
(संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं सजग अग्रज साहित्यकार श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” जी के साप्ताहिक स्तम्भ “मनोज साहित्य ” में आज प्रस्तुत है “मनोज के दोहे”। आप प्रत्येक मंगलवार को आपकी भावप्रवण रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे।
मनोज साहित्य # 41 – मनोज के दोहे ☆
देख पसीना बह रहा, कृषक खड़ा है खेत।
जेठ पूस सावन-झरे, हर फसलों को सेत।।
जेठ उगलता आग है, श्रमिक रहा है ताप।
अग्नि पेट की शांत हो, करे कर्म का जाप।।
अग्नि-परीक्षा की घड़ी, करो विवेकी बात।
आपस में मिलकर रहें, दुश्मन को दें मात।।
मरघट में ज्वाला जली, दे जाती संदेश।
मानव की गति है यही, छोड़ चला वह वेश।।
सूरज का आतप बड़ा, दे जाता संताप।
वर्षा ऋतु ही रोकती, सबका रुदन-प्रलाप।।
खुश होता है वह श्रमिक, उसको मिले रसूख।
उसके घर चूल्हा जले, मिटे पेट की भूख।।
© मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”
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