श्री अरुण श्रीवास्तव
(श्री अरुण श्रीवास्तव जी भारतीय स्टेट बैंक से वरिष्ठ सेवानिवृत्त अधिकारी हैं। बैंक की सेवाओं में अक्सर हमें सार्वजनिक एवं कार्यालयीन जीवन में कई लोगों से मिलना जुलना होता है। ऐसे में कोई संवेदनशील साहित्यकार ही उन चरित्रों को लेखनी से साकार कर सकता है। श्री अरुण श्रीवास्तव जी ने संभवतः अपने जीवन में ऐसे कई चरित्रों में से कुछ पात्र अपनी साहित्यिक रचनाओं में चुने होंगे। उन्होंने ऐसे ही कुछ पात्रों के इर्द गिर्द अपनी कथाओं का ताना बाना बुना है। आज प्रस्तुत है आपका एक विचारणीय आलेख “कॉमेडी…“।)
☆ आलेख # 40 – कॉमेडी – भाग – 1 ☆ श्री अरुण श्रीवास्तव ☆
जीवन में नवरस का होना ईश्वर के हाथ में है पर हास्यरस का होना आवश्यक है स्वास्थ्यप्रद मानसिकता के लिये. हास्यरस को स्थूल रूप से कॉमेडी भी कहा जाता है जिसका जीवन में प्रवेश, बचपन में देखे जाने वाले सर्कस के जोकर से शुरु होता है. इन्हें विदूषक भी कहा जाता है. ये अपनी वेशभूषा, भावभंगिमा से दर्शकों और विशेषकर बच्चों से तारतम्य स्थापित करते हैं. यहाँ शब्दों की आवश्कता नहीं होती.
जोकर की जीवनी पर तीन भागों, दो इंटरवल वाली चार घंटे की फिल्म सिर्फ राजकपूर ही बना सकते हैं. फिल्म का पहला भाग विश्व की किसी भी भाषा में बनी फिल्म से प्रतिस्पर्धा कर सकता था. मासूम बचपन और शिक्षिका के प्रति अज्ञात आकर्षण की संवेदना को बहुत खूबसूरती से फिल्मांकन करने में राजकपूर सिद्धहस्त थे. अभिनय की दृष्टि से अबोध ऋषिकपूर भी नहीं जानते होंगे कि स्वाभाविक अभिनय से सजी यह फिल्म उनकी सर्वश्रेष्ठ फिल्मों में से एक होगी. “शो मस्ट गो ऑन” इसी फिल्म की थीम थी और राजकपूर की संगीतकार शंकर जयकिशन के साथ अंतिम फिल्म भी यही थी यद्यपि जयकिशन पहले ही अनंत में विलीन हो चुके थे.
पर बात यहाँ सिर्फ फिल्मों की नहीं हो रही है, हास्यरस हमारा प्रमुख विषय है. कामेडी का अगला पड़ाव सर्कस से शिफ्ट होकर फिल्मों पर आता है और तरह तरह की कामेडी करने वाले, विभिन्न काया, भंगिमा और आवाज़ के स्वामी, हास्य अभिनेताओं की कामेडी से वास्ता पड़ता है. कभी सिचुएशनल कॉमेडी, कभी भाव भंगिमा, तो कभी असामान्य आवाज़ या नाकनक्श. गोप, जॉनीवाकर, आगा, मुकरी, राजेंद्र नाथ, मोहन चोटी, केश्टो मुखर्जी आदि बहुत सारे हास्य कलाकार थे पर सबसे सफल थे महमूद जिनकी फिल्म के नायक के साथ साथ खुद की कहानी भी समांतर चला करती थी और अभिनेत्री शोभाखोटे के साथ महमूद की सफल जोड़ी भी बन गई थी. बाद में यही महमूद फिल्म निर्माता बने और अमिताभ बच्चन और संगीतकार आर.डी.बर्मन को अपनी फिल्मों में मौका दिया. बांबे टू गोवा, अमिताभ बचन की सफल फिल्म थी और भूत बंगला राहुल देव बर्मन की.
क्रमशः…
© अरुण श्रीवास्तव
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