श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

(सुप्रसिद्ध वरिष्ठ साहित्यकार श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी अर्ध शताधिक अलंकरणों /सम्मानों से अलंकृत/सम्मानित हैं। आपकी लघुकथा  रात  का  चौकीदार”  महाराष्ट्र शासन के शैक्षणिक पाठ्यक्रम कक्षा 9वीं की  “हिंदी लोक भारती” पाठ्यपुस्तक में सम्मिलित। आप हमारे प्रबुद्ध पाठकों के साथ  समय-समय पर अपनी अप्रतिम रचनाएँ साझा करते रहते हैं। आज प्रस्तुत है एक भावप्रवण एवं विचारणीय “तन्मय दोहे – मायावी षड्यंत्र…2”)

☆  तन्मय साहित्य # 140 ☆

☆ तन्मय दोहे – मायावी षड्यंत्र…2 ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ ☆

जब से मेरे गाँव में, पहुँचे शहरी भाव।

भाई-चारे  प्रेम के, बुझने लगे अलाव।।

 

भूखों का मेला लगा, तरह-तरह की भूख।

जर,जमीन,यश, जिस्म की, जैसा जिसका रूख।।

 

खादी तन पर डालकर, बगुले  बनते हंस।

रच प्रपंच मिल कर रहे, लोकतंत्र विध्वंस।।

 

धर्म-पंथ के नाम पर, अलग-अलग है सोच

लोकतंत्र  लँगड़ा रहा, पड़ी  पाँव में  मोच।

 

वेतन-भत्ते सदन में, सह-सम्मति से पास।

दाई-जच्चा वे स्वयं, फिर क्यों रहें उदास।।

 

जिनके ज्यादा अंक है, अपराधों में खास।

है उनके ही   हाथ में, प्रजातंत्र  की  रास।।

© सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय

अलीगढ़/भोपाल   

मो. 9893266014

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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