श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’
(ई-अभिव्यक्ति में संस्कारधानी की सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’ जी द्वारा “व्यंग्य से सीखें और सिखाएं” शीर्षक से साप्ताहिक स्तम्भ प्रारम्भ करने के लिए हार्दिक आभार। आप अविचल प्रभा मासिक ई पत्रिका की प्रधान सम्पादक हैं। कई साहित्यिक संस्थाओं के महत्वपूर्ण पदों पर सुशोभित हैं तथा कई पुरस्कारों/अलंकरणों से पुरस्कृत/अलंकृत हैं। आपके साप्ताहिक स्तम्भ – व्यंग्य से सीखें और सिखाएं में आज प्रस्तुत है एक सार्थक एवं विचारणीय रचना “व्यास पूर्णिमा ”। इस सार्थक रचना के लिए श्रीमती छाया सक्सेना जी की लेखनी को सादर नमन।
आप प्रत्येक गुरुवार को श्रीमती छाया सक्सेना जी की रचना को आत्मसात कर सकेंगे।)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – आलेख से सीखें और सिखाएं # 108 ☆
☆ व्यास पूर्णिमा ☆
अखण्डमण्डलाकारं व्याप्तं येन चराचरम्।
तत्पदं दर्शितं येन तस्मै श्रीगुरवे नमः।।
अर्थात् महान गुरु को अभिवादन, जिन्होंने उस अवस्था का साक्षात्कार करना संभव किया जो पूरे ब्रम्हांड में व्याप्त है, सभी जीवित और निर्जीव में।
इस बात पर सभी एकमत हैं कि जिससे भी ज्ञान मिले वो हमारा गुरु कहलाता है। किंतु क्या ऐसा कहना सही होगा। ज्ञान तो वक्त के साथ – साथ कड़वे अनुभवों से मिलता है। हर पल कहीं न कहीं से कुछ न कुछ हम सीखते रहते हैं। किंतु वास्तव में इन सबको गुरु की श्रेणी में नहीं रखा जा सकता है। गुरु बिनु ज्ञान न होय। कोई भी सच्चा ज्ञानी तभी हो सकता है जब उसके मन का अंधकार दूर होकर उसकी अंतरात्मा प्रकाशित हो उठे। और ऐसा केवल सच्चा मार्गदर्शक ही कर सकता है।
जहाँ जाने से मन को सुकून मिले और ऐसा लगने लगे कि अब जीवन को जानने व समझने की खोज खत्म हो गयी है वहीं पर विश्राम करते हुए ध्यानस्थ हो जाना चाहिए। जितने भी संत महात्मा हुए हैं वे सभी इसी तरह शांत- चित्त से समाज में रहते हुए भी परमात्मा के साथ एकीकार हो गए हैं।
व्यास पूर्णिमा यही संदेश सदियों से जनमानस को देती हुई चली आ रही है। हमारा सनातन धर्म पूर्णतया वैज्ञानिक मापदंडों पर खरा उतरता है। ॐ में सम्पूर्ण सृष्टि को समाहित करते हुए जब कोई मंत्र बोला जाता है तब वो स्वयं सिद्ध होकर जनमानस के ऊर्जान्वित करता है।
चौमासे की शुरुआत से ही पूजा पाठ का जो दौर शुरू होता है वो देवउठनी एकादशी पर पूर्णता को प्राप्त करता है। प्रकाश का जीवन में आगमन ही अंधकार का अंत होता है। इसे श्रेष्ठ गुरु के सानिध्य से ही पाया जा सकता है।
आइए विचारों की समस्त उथल- पुथल को गुरु को सौंप कर राष्ट्रहित में कुछ अच्छा करें कुछ सच्चा करें।
© श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’
माँ नर्मदे नगर, म.न. -12, फेज- 1, बिलहरी, जबलपुर ( म. प्र.) 482020
मो. 7024285788, [email protected]
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈