श्री संतोष नेमा “संतोष”
(आदरणीय श्री संतोष नेमा जी कवितायें, व्यंग्य, गजल, दोहे, मुक्तक आदि विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं. धार्मिक एवं सामाजिक संस्कार आपको विरासत में मिले हैं. आपके पिताजी स्वर्गीय देवी चरण नेमा जी ने कई भजन और आरतियाँ लिखीं थीं, जिनका प्रकाशन भी हुआ है. आप डाक विभाग से सेवानिवृत्त हैं. आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होती रहती हैं। आप कई सम्मानों / पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत हैं. “साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष” की अगली कड़ी में आज प्रस्तुत हैं आपकी “एक बुन्देली पूर्णिका”। आप श्री संतोष नेमा जी की रचनाएँ प्रत्येक शुक्रवार आत्मसात कर सकते हैं।)
☆ साहित्यिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 129 ☆
☆ एक बुन्देली पूर्णिका ☆ श्री संतोष नेमा ☆
बाप मताई खों आंख दिखा रए, शरम ने आई।
करनी अपनी खूब लजा रए, शरम ने आई।
कभउं जो कोउ के काम ने आबे, मूंड पटक लो,
खुद खों धन्ना सेठ बता रए, शरम ने आई।
झूठ-फरेब कुकर्म करे, दौलत के लाने।
तीरथ जा खें पुण्य कमा रए, शरम ने आई।
पढ़वे लिखवे में तौ, सबसे रहे पछारूं,
अब नेता बन धौंस जमा रए, शरम ने आई।
भूखी अम्मा घर में, परी परी चिल्लाबे,
बाहर भंडारे करवा रए, शरम ने आई।
धरम-करम “संतोष”छोड़ खें, सारे भैया,
दौलत के लाने भैरा रए, शरम ने आई।
© संतोष कुमार नेमा “संतोष”
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