श्री जय प्रकाश पाण्डेय
(श्री जयप्रकाश पाण्डेय जी की पहचान भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी के अतिरिक्त एक वरिष्ठ साहित्यकार की है। वे साहित्य की विभिन्न विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं। उनके व्यंग्य रचनाओं पर स्व. हरीशंकर परसाईं जी के साहित्य का असर देखने को मिलता है। परसाईं जी का सानिध्य उनके जीवन के अविस्मरणीय अनमोल क्षणों में से हैं, जिन्हें उन्होने अपने हृदय एवं साहित्य में सँजो रखा है।आज प्रस्तुत है आपका एक अतिसुन्दर व्यंग्य – “जंगल का कानून”।)
☆ व्यंग्य # 146 ☆ जंगल का कानून ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय ☆
बड़े बड़े पेट एवं मोटे-मोटे हाथ पांव वाले मांसाहारी नेताओं और अमीरों की कुदृष्टि से परेशान होकर जंगल के सारे शेरों ने अपनी आपातकालीन बैठक में सोशल मीडिया और टीवी चैनल में टाइगर जाति पर की जा रही ऊटपटांग बयानबाजी पर निंदा प्रस्ताव रखा। शेर शांत है, शेर का मुंह खुला है, शेर के दांत दिख रहे हैं, शेर अब दहाड़ने लगा है, शेर अब पहले जैसा नहीं रहा, पहले वाले शेर में अलग बात थी… जैसी बातों से मीडिया मार्केट गरम है, और टीवी चैनल वाले अच्छी कमाई कर रहे हैं अपनी टीआरपी बढ़ा रहे हैं। बैठक में एक शेरनी ने आरोप लगाया कि ये हाथ मटकाने वाले लोग बेवजह तंग करने पर उतारू हैं, कुछ मांसाहारी बड़े लोग भोली-भाली विदेशी शेरनी को बुरी नजर से देखते हैं और अंट संट कमेंट्स करते हैं सोशल मीडिया में ऐसी घटनाएं दिनों दिन बढ़ रही हैं।
शेरों के मुखिया ने अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में कहा कि पहले जैसी इंसानियत नहीं रही, अब बात बात में बतड़ंग हो जाता है, टीवी चैनल की डिबेट में ये लोग जानवरों जैसे लड़ते हैं, और हमारी टाइगर कौम को एक विचारधारा से जोड़ कर कुछ भी कहते हैं….शेर का मुंह चाहे खुला हो या अधखुला, शांत हो या खूंखार, बन्द मुह से चबाता हो, चाहे बिना चबाए गुटक जाता हो। शेर के ऊपर आप राजनीति करने वाले कौन होते हो। शेर शेर है चाहे वो ख़ुश रहे, चाहे अवसादग्रस्त, शांत रहें या उग्र। तुम लोग कौन होते हो जो चाहते हो कि उसका चेहरा भी वैसा दिखना चाहिए जैसा हम कल्पना करते है, सोचते है। शेर को शेर ही रहने दो यार।
कितना मुह खोलना है, कि बन्द रखना है,बोलना है कि नही, दहाड़ना है या मुह मोड़ना है, मुह दिखाना है या मुह छिपाना, दाँत निपोरना या जीभ दिखाना ये सब आप इंसान से करा सकते है जंगल के राजा से नही…. समझे कि नहीं।
इन सब कारणों से जंगल के राजा ने नया कानून प्रस्तावित किया है कि जब भी जंगल में टाइगर देखने ऐसे मांसाहारी और राजनीति करने वाले लोग आयेंगे तो कोई भी शेर शेरनी इनको दर्शन नहीं देगा, और धोखे से देखने की कोशिश की तो गुर्रा कर उन्हें डरायेंगे। जानवर का मांस खाना अच्छी बात नहीं है। और शराब पीकर मांस खाते हुए ये लोग बहुत बुरी बुरी बात करते हैं जिससे जंगल की हवा प्रदूषित होती है। ये सब दो चार दिन को ऐश करने यहां आते हैं और जंगल का वातावरण खराब कर जाते हैं। मीटिंग के अंत में निंदा प्रस्ताव में कहा गया कि मांसाहारी और ऊंटपटांग राजनीति करने वालों से शेर जाति घृणा करती है और जंगल बचाने की अपील करती है।
© जय प्रकाश पाण्डेय
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Jordar vyang Pandeyji
अति उत्तम