डॉ राजकुमार तिवारी ‘सुमित्र’
(संस्कारधानी जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ. राजकुमार “सुमित्र” जी को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया। वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणा स्त्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं आपका एक अप्रतिम गीत – तुम्हीं बताओ…।)
साप्ताहिक स्तम्भ – लेखनी सुमित्र की # 97 – गीत – तुम्हीं बताओ…
तुम्हीं बताओ जीवन घन
कैसे बीतेगा जीवन।
तुम थीं कोई बात नहीं थी
उजियारी थी, रात नहीं थी
तुम्हीं सम्हाँले थीं जीवन को
मेरी तो औकात नहीं थी।
अंधाधुंध चल पड़ी आँधियाँ
उजड़ गया साधों का उपवन
तुम ही बताओ जीवन धन
कैसे बीतेगा जीवन।
तुम थीं तो थी पूरनमासी
नहीं दुख था नहीं उदासी
चहल-पहल थी पूरे घर में
खुशियाँ दिन चौखट की दासी
उन्मन उन्मन रहता है मन
जाने कैसे लग गया गहन
तुम ही बताओ जीवन धन
कैसे बीतेगा जीवन।
© डॉ राजकुमार “सुमित्र”
112 सर्राफा वार्ड, सिटी कोतवाली के पीछे चुन्नीलाल का बाड़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈
शानदार भावाभिव्यक्ति