श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’

(ई-अभिव्यक्ति में संस्कारधानी की सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’ जी द्वारा “व्यंग्य से सीखें और सिखाएं” शीर्षक से साप्ताहिक स्तम्भ प्रारम्भ करने के लिए हार्दिक आभार। आप अविचल प्रभा मासिक ई पत्रिका की प्रधान सम्पादक हैं। कई साहित्यिक संस्थाओं के महत्वपूर्ण पदों पर सुशोभित हैं तथा कई पुरस्कारों/अलंकरणों से पुरस्कृत/अलंकृत हैं।  आपके साप्ताहिक स्तम्भ – व्यंग्य से सीखें और सिखाएं  में आज प्रस्तुत है एक सार्थक एवं विचारणीय व्यंग्य “जुगलबंदी”। इस सार्थक रचना के लिए श्रीमती छाया सक्सेना जी की लेखनी को सादर नमन।

आप प्रत्येक गुरुवार को श्रीमती छाया सक्सेना जी की रचना को आत्मसात कर सकेंगे।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  – व्यंग्य से सीखें और सिखाएं # 109 ☆

☆ जुगलबंदी ☆ 

आंदोलनों की आड़ में कार्यों को बाधित करने की शैली पुरानी हो चली है। तकनीकी अब बदलाव चाहती है। जहाँ संख्या बल हो वहीं पर अपने को टीम लीडर बनाकर खड़े हो जाने से काम नहीं चलेगा। इसके लिए किसी मजबूत हस्त की छत्र छाया चाहिए होती है। पीछे से सही गलत की सलाह मिलती रहे तो कदम सुरक्षित दिशा की ओर खुद व खुद  बढ़ते जाते हैं। यहाँ आकर्षण बल का सिद्धांत का सिद्धांत लागू होने लगता है। लोग वहीं का रुख कर लेते हैं जहाँ मजबूती दिखाई  देती है।

मुहँ फुलाकर हाथ पर हाथ धरे बैठने से टीम का आखिरी सदस्य भी चला गया। अब किसके सामने अपनी महत्वा को बताएंगे। दरसल आप में नेतृत्व की क्षमता  नहीं थी  सो ऐसा तो होना ही था। लगभग सभी क्षेत्रों में यही चल रहा है। पकड़ ढीली होते ही ताश के पत्ते खुलने लगते हैं और रेतीला महल भरभरा कर ढह जाता है। रेत सीमेंट का जोड़ बहुत जरूरी है। केवल नींव के पत्थर तो आपको मौसम की मार से नहीं बचा सकते हैं। आजकल खम्भों पर बहुमंजिला इमारतें तनी होती हैं। सो नींव का एक पत्थर यदि चिल्लाकर दुहाई देगा की वही प्रमुख है उसे पूजो इस पर कोई ध्यान नहीं देगा।

सुधारों की ओर समय रहते ध्यान न देने पर बारिश में छतों से पानी टपकना, दीवारों में सीलन आना, घरों में पानी घुसना ये सब आम बातें हैं। हमारे जीवन के सभी कार्य इन्हीं नियमों से चल रहे हैं। समय रहते संतान को संस्कारित न किया जाए तो वो बिना मौसम आपकी बेज्जती करवाती रहती है। और मोह से ग्रसित व्यक्ति  धृतराष्ट्र की तरह महाभारत के चक्रव्यूह का गुनहगार बन ही जाता है।

अपने सिद्धांतों पर अडिग रहने से ही मजबूती कायम होगी। कहते हैं नियमित पुस्तक पढ़ने से हर समस्या का हल मिल जाता है। हमें दूसरों के अनुभवों से सीखने व समझने हेतु अपने क्षेत्र से सम्बंधित पुस्तकें पढ़नी चाहिए।

©  श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’

माँ नर्मदे नगर, म.न. -12, फेज- 1, बिलहरी, जबलपुर ( म. प्र.) 482020

मो. 7024285788, [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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