डॉ भावना शुक्ल
(डॉ भावना शुक्ल जी (सह संपादक ‘प्राची‘) को जो कुछ साहित्यिक विरासत में मिला है उसे उन्होने मात्र सँजोया ही नहीं अपितु , उस विरासत को गति प्रदान किया है। हम ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि माँ सरस्वती का वरद हस्त उन पर ऐसा ही बना रहे। आज प्रस्तुत हैं “भावना के दोहे …”।)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 141 – साहित्य निकुंज ☆
☆ भावना के दोहे … ☆
पीड़ा मेरी समझ लो, धरती करे पुकार।
आकुल व्याकुल हो रही, डाल रहे क्यों भार।।
धरती कबसे कह रही, सुन लो मेरी बात।
हरियाली छीनों नहीं, छिन जायेगी रात।।
आँसू बहने लगे है, सहते सहते भार।
अब मैं तुमसे क्या कहूँ, लगी मानने हार।।
समझ गए हैं आज हम, तेरी पीड़ा आज।
दूर करें हम गंदगी, तभी धरा पर राज।।
© डॉ भावना शुक्ल
सहसंपादक… प्राची
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