श्री जय प्रकाश पाण्डेय
(श्री जयप्रकाश पाण्डेय जी की पहचान भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी के अतिरिक्त एक वरिष्ठ साहित्यकार की है। वे साहित्य की विभिन्न विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं। उनके व्यंग्य रचनाओं पर स्व. हरीशंकर परसाईं जी के साहित्य का असर देखने को मिलता है। परसाईं जी का सानिध्य उनके जीवन के अविस्मरणीय अनमोल क्षणों में से हैं, जिन्हें उन्होने अपने हृदय एवं साहित्य में सँजो रखा है।आज प्रस्तुत है आपका एक अतिसुन्दर व्यंग्य – चौपाल चर्चा – “साइकिल के बहाने”।)
☆ व्यंग्य # 147 ☆ चौपाल चर्चा – “साइकिल के बहाने” ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय ☆
हमारी चौपाल चर्चा के फूफा ने जब से सेकेंड हैंड साइकिल खरीदी है, तब से साइकिल चर्चा में रही आती है। साइकिल जिनसे खरीदी है वे भी पुराने मित्र हैं, जब भी साइकिल पर चर्चा चलती है वे चुपके चुपके मुस्कराते रहते हैं, पर मुस्कराने का राज नहीं बताते। एक साथी का सोचना है कि फूफा ठगे गए हैं क्योंकि आजकल ऐसे कोई साइकिल खरीदता नहीं और इतनी पुरानी साइकिल कबाड़ी भी कबाड़ के भाव लेता है, फूफा अपने आपको होशियार समझते हैं, हर बात में खुचड़ करने का उनका स्वभाव है, कुछ लोग उन्हें अरकाटी कहते हैं, ठगे जाने पर भी सामने वाले को वे बुद्धू समझते हैं।
सब लोग फूफा को खुश करने के लिए साइकिल की झूठी तारीफ करते रहते हैं। एक दिन अचानक साइकिल का अगला चका फूट गया, टायर और ट्यूब फट गये, साइकिल पर और साइकिल सवारी करने वाले पर तरह तरह की बहस होने लगी। ऐसे समय में छकौड़ी को अपनी साइकिल याद आ गई, जिसमें वो कालेज पढ़ने जाता था। साइकिल में तीन डण्डे होते थे, नीचे वाले डण्डे में दो हुक लगे रहते थे जिसमें हवा भरने का पम्प फंसा रहता था। उस समय साइकिल में हवा भरने में बड़ा मजा आता था। अब तो न वे पम्प रहे न वैसी साइकिल रही, उस समय छकौड़ी की साइकिल गरीबी रेखा की साइकिल कहलाती थी, जिसमें बाकायदा फटे टायर में गैटर डाल दिया जाता था।
चौपाल में साइकिल चर्चा चल रही थी कि अचानक मुन्ना ने देश की अर्थव्यवस्था पर चिंता जाहिर कर दी तो फूफा डांटने लगे, कहने लगे बीच में मत बोला करो। मामू अड़ गए कहने लगे आज की चर्चा साइकिल और अर्थव्यवस्था पर होनी चाहिए।
बीच में गंगू ने एक जोरदार प्रश्न दाग दिया,
“क्या साइक्लिंग अर्थव्यवस्था के लिए हानिकारक है…?”
प्रश्न हास्यास्पद जरूर है परन्तु सत्य है !
“एक साइकिल चलाने वाला देश की चरमराती अर्थव्यवस्था में कितनी मदद करता है”?
सब एक दूसरे का मुंह देखने लगे। जिस भाई ने साइकिल बेची थी उसने शर्माते हुए जबाब दिया – “साइकिल चलाने वाला कभी मंहगी गाड़ी नहीं खरीदता, वो कभी लोन नहीं लेता, वो गाड़ी का बीमा नहीं करवाता, वो तेल नहीं खरीदता, वो गाड़ी की सर्विसिंग नहीं करवाता, वो पैसे देकर गाड़ी पार्किंग नहीं करता, और वो मोटा (मोटापा) नहीं होता।”
गंगू बोला – “ये सत्य है कि स्वस्थ व्यक्ति अर्थव्यवस्था के लिए सही नहीं है,क्योंकि:-
-वो दवाई नहीं खरीदता,
-वो अस्पताल या चिकित्सालय के पास नहीं जाता,
-वो राष्ट्र के GDP में कोई योगदान नहीं देता ।”
दोस्तों के बीच मजाकिया बहस करने में सबको मजा आ रहा था, कुछ लोग साइकिल सवारी के और फायदे बताने को तैयार हुए पर अचानक पीछे से एक सांड आया और उसने अपने सींगों में साइकिल फंसाकर सड़क के उस पार फैंक दी। चौपाल चर्चा में बैठे सब लोग डर कर इधर उधर भाग गए। फूफा बड़बडाते हुए बोले- “लगता है साइकिल गलत मुहूर्त में ले ली। फूफा डरे डरे कभी सांड को देखते और कभी टूटी साइकिल को…”
© जय प्रकाश पाण्डेय
416 – एच, जय नगर, आई बी एम आफिस के पास जबलपुर – 482002 मोबाइल 9977318765