श्रीमती सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’
(संस्कारधानी जबलपुर की श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’ जी की लघुकथाओं, कविता /गीत का अपना संसार है। साप्ताहिक स्तम्भ – श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य शृंखला में आज प्रस्तुत है आपकी एक हृदयस्पर्शी एवं विचारणीय लघुकथा “खुशियों का मोल”।)
☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य # 132 ☆
☆ लघुकथा ☆ खुशियों का मोल ☆
चंद्रशेखर एक छोटे से गाँव में पला बढ़ा। पढ़ – लिख कर अच्छी कंपनी में नौकरी मिल गई। विदेश जाने का मौका मिला और फिर लौटकर गाँव आने की उम्मीद भी कम हो गई।
गाँव में बूढ़े माँ बाप अपने एकमात्र संतान की खुशियों के आगे चुपचाप रह गए। वही की लड़की से शादी कर चंद्रशेखर विदेश का ही होकर रह गया।
कभी दो-तीन महीने में एक बार माँ-पिताजी को फोन कर हाल-चाल पूछ लिया करता था। पार्ट टाईम जॉब के लिए दोनों वहाँ वरिष्ठ आश्रम एन. जी. ओ. चला रहे थे।
जहाँ पर उम्र दराज महिला और पुरुष समय व्यतीत करने आते थे।और अपने समान सभी को देख खुश होते थे।
आज चंद्रशेखर को एक रजिस्टर्ड पत्र मिला। जिसमें लिखा था…. “बेटा बहुत मेहरबानी होगी मुझे और तेरी माँ को भी किसी वृद्धा आश्रम में यहाँ डाल दे। कम से कम उसमें अपना दुख – सुख तो बाँट लेंगे।
जब भी तुम आओगे हमें भी सभी के साथ वहां पाओगे। और हमारा समय भी कट जायेगा। तुम्हें आने जाने के लिए हम लोग कभी भी नहीं कहेंगे।
तुम अपना एन. जी. ओ. अच्छे से चलाना। हमें भी खुशी होगी।”
चंद्रशेखर पत्र को पढ़कर आवाक था… क्या माँ पिताजी की खुशियों का मोल यही था!!
© श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈