श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’

(ई-अभिव्यक्ति में संस्कारधानी की सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’ जी द्वारा “व्यंग्य से सीखें और सिखाएं” शीर्षक से साप्ताहिक स्तम्भ प्रारम्भ करने के लिए हार्दिक आभार। आप अविचल प्रभा मासिक ई पत्रिका की प्रधान सम्पादक हैं। कई साहित्यिक संस्थाओं के महत्वपूर्ण पदों पर सुशोभित हैं तथा कई पुरस्कारों/अलंकरणों से पुरस्कृत/अलंकृत हैं।  आपके साप्ताहिक स्तम्भ – व्यंग्य से सीखें और सिखाएं  में आज प्रस्तुत है एक सार्थक एवं विचारणीय व्यंग्य “आरोप – प्रत्यारोप”। इस सार्थक रचना के लिए श्रीमती छाया सक्सेना जी की लेखनी को सादर नमन।

आप प्रत्येक गुरुवार को श्रीमती छाया सक्सेना जी की रचना को आत्मसात कर सकेंगे।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  – व्यंग्य से सीखें और सिखाएं # 110 ☆

☆ आरोप – प्रत्यारोप ☆ 

बात तू तू –  मैं मैं से शुरू होकर इतनी बढ़ जाएगी कि  सावन की झड़ी को नकारते हुए आरोपों की झड़ी आगे बढ़कर शीर्ष पर विराजित होने की ओर सबकी सलाह को एक तरफ रख अपनी बुद्धि का प्रयोग करने से नहीं चूकेगी। सारे ताम- झाम लगाकर कुछ सीटें हासिल की थीं किन्तु उसमें भी लोगों की नजर लग गयी। कोई यहाँ कोई वहाँ जाने में पूरे 5 वर्ष व्यतीत कर देता है। मजे की बात जब जनता की अदालत में पहुँचते हैं तो फिर से मासूमियत का दिखावा  काम कर जाता है। कोई भी दल हो जीतते व्यक्ति के कर्म हैं। लोगों ने तो जैसे नेताओं के लिए अघोषित पात्रता निर्धारित कर दी है। कहीं भी रहें जीतेगा तो वही जो पूरे दमखम से अपनी बात नजर मिलाकर रखेगा।

नजर क्या केवल लगने और उतारने के लिए होती है। इसी के बल पर लोगों को बिना कुछ बोले डराया व धमकाया भी जा सकता है। एक सीट वाला व्यक्ति भी उपयोगी होता है , उसे अपनी ओर करने के लिए अनवरत कोशिशें होती रहती है। खींच- तान के बीच झूलते प्रशासकीय अधिकारी भी अपने दल का चुनाव कर ही लेते हैं। आखिर सच्चे लोकतंत्र की परिभाषा इन्हीं बदलते रिश्तों पर ही टिकी होती है।

इन सबमें मतदाताओं की भूमिका  क्या होनी चाहिए इस पर कोई प्रश्न चिन्ह नहीं लगाता क्योंकि उन्हें मालूम है कि सब कुछ प्रायोजित है बस मेहनत  तो करनी पड़ेगी। वैसे भी गीता का ज्ञान यही कहता है – कर्म किए जा फल की इच्छा मत कर ए  इंसान।

एक प्रश्न और मन में कौंधता है कि जिस दल का घोषणा पत्र लेकर आए हैं क्या पूरे 5 वर्ष उसी पर अमल करेंगे या जिसके विरोध में उतरे थे उसी का हाथ पकड़  अपने उसूलों को स्वयं ध्वस्त करेंगे।

सारा समय डिजिटल प्लेटफार्म पर बिताने के साथ- साथ अच्छी खासी फैन फॉलोइंग   भी बना लेते हैं जिससे जरूरत पड़ने पर ट्विटर व इंस्टाग्राम पर समय व्यतीत कर सकें। आजकल मन की बातें करने का सबसे सशक्त माध्यम यही है। सारे सवाल- जबाव यहीं करते हुए समस्याओं को बढ़ाना- घटाना, जोड़ना, तोड़ना , मोड़ना यही करते रहते हैं।

कोई कुछ भी कहे बस कुर्सी के किस्से अपने हिस्से हो जाए, यही मूल मंत्र होता है।

©  श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’

माँ नर्मदे नगर, म.न. -12, फेज- 1, बिलहरी, जबलपुर ( म. प्र.) 482020

मो. 7024285788, [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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