श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”
(संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं सजग अग्रज साहित्यकार श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” जी के साप्ताहिक स्तम्भ “मनोज साहित्य ” में हम आज प्रस्तुत कर रहे हैं श्री मनोज जी द्वारा 30 जुलाई 2022 को कनाडा में आयोजित एक लघु द्वि-राष्ट्रीय कवि गोष्ठी में विश्व हिन्दी संस्थान (कनाडा) के अध्यक्ष एवं लोकप्रिय साहित्यिक ई-पत्रिका “प्रयास” के सम्पादक प्रो. सरन घई जी को प्रदत्त प्रशस्ति पत्र में उल्लेखित कविता।
श्री सरन घई जी को उनकी हिंदी के प्रति अगाध प्रेम, निष्ठा और लगन को देखते हुए श्री मनोज कुमार शुक्ल, संस्थापक,मंथन संस्था, जबलपुर (मध्य प्रदेश) भारत की ओर से यह प्रशस्ति पत्र भेंट किया गया। लगभग 50 पुस्तकों के रचयिता प्रो.सरन घई, कनाडा के काफी लोकप्रिय हिन्दी साहित्यकार हैं।
श्री सरन घई जी के निवास स्थान पर भारत से पधारे समाचार पत्र जनसत्ता के पूर्व सम्पादक श्री शंभूनाथ शुक्ला जी के मुख्य आतिथ्य एवं मनोजकुमार शुक्ल “मनोज” जबलपुर, श्री दिनेश रघुवंशी, श्रीमती सरोजिनी जौहर, के विशिष्ट आतिथ्य एवं कनाडा के योगाचार्य, लोकप्रिय कवि श्री संदीप त्यागी जी के कुशल संचालन में कनाडा के चुनिंदा कवियों का एक मिनि द्वि-राष्ट्रीय कवि गोष्ठी का आयोजन सम्पन्न हुआ। कनाडा के मुख्य कवि श्री भगवत शरण श्रीवास्तव, श्री डॉ विनोद भल्ला, श्री पाराशर गौड़, श्री युक्ता लाल, श्री श्याम सिंह, श्रीमती साधना जोशी, श्रीमती मीना चोपड़ा, श्री भूपेंद्र विरदी, डॉक्टर संतोष वैद, श्री रविंद्र लाल, श्री गौरव, श्री उत्कर्ष तिवारी, श्री राम भल्ला, कीर्ति शुक्ला एवं सरोज शुक्ला आदि कवियों ने अपनी एक से बढ़कर एक रचनाएं प्रस्तुत की इसके पश्चात कार्यक्रम में भारत से पधारे हुए कवियों का प्रो. सरन घई जी ने अंग वस्त्र, संस्था-स्मृति चिन्ह एवं अभिनंदन पत्र देकर सम्मानित किया। सभी ने आदरणीय डॉ सरन घई जी की मुक्त कंठ से प्रशंसा की।
आप प्रत्येक मंगलवार को श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” जी की भावप्रवण रचनाएँ आत्मसात कर सकते हैं।)
मनोज साहित्य # 44 – प्रो. सरन घई – “मातृभूमि से दूर पर, है हिंदी से प्यार” ☆
(प्रशस्ति पत्र – आदरणीय प्रो. सरन घई जी, विश्व हिन्दी संस्थान, कनाडा – ३० जुलाई 2022 )
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“विश्व हिन्दी संस्थान”, अनुपम इसकी शान।
परचम है लहरा रहा, भारत का सम्मान।।
धन्य हुए हम आज हैं, मिला सुखद संजोग।
फिर अवसर है आ गया, कवि सम्मेलन योग।।
सात बरस के बाद का, लम्बा था वैराग्य।
पाया है सानिध्य अब , मुझे मिला सौभाग्य।।
मातृभूमि से दूर पर, है हिंदी से प्यार।
सरन घई की नाव है, खेते हैं पतवार।।
केनेडा की धरा में, अद्भुत बड़ा “प्रयास”।
हिन्दी दिल में है बसी, सुखद हुआ अहसास ।।
देश प्रेम की यह छटा, राष्ट्र भक्ति उद्गार ।
दिल में दीपक है जला, फैल रहा उजियार ।।
भारत की सरकार ने, हिन्दी का सम्मान।
राष्ट्रवाद की गूँज से, बनी जगत पहचान।।
आओ मिल वंदन करें, हिंदी का हम आज।
विश्व पटल पर छा गयी, भारत को है नाज।।
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(श्री मनोज कुमार शुक्ल ” मनोज ” जी की फेसबुक वाल से साभार )
© मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”
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