प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध
(आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी द्वारा रचित एक भावप्रवण कविता “कल्पना का संसार…”। हमारे प्रबुद्ध पाठक गण प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे। )
☆ काव्य धारा 93 ☆ “कल्पना का संसार…” ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆
मनुज मन को हमेशा कल्पना से प्यार होता है
बसा उसके नयन में एक सरस संसार होता है।
जिसे वह खुद बनाता है, जिसे वह खुद सजाता है
कि जिसका वास्तविकता से अलग आकार होता है।
जहाँ हरयालियाँ होती, जहाँ फुलवारियां होती
जहाँ रंगीनियों से नित नया अभिसार होता है।
जहाँ कलियाँ उमगतीं है जहाँ पर फूल खिलते हैं
बहारों से जहाँ मौसम सदा गुलजार होता है।
जहाँ पर पालतू बिल्ली सी खुशियां लोटती पग पै
जहाँ पर रेशमी किरणों का वन्दनवार होता है।
अनोखी होती है दुनियां सभी की कल्पनाओं की
जहाँ संसार पै मन का मधुर अधिकार होता है।
जहाँ सब होते भी सच में कहीं कुछ भी नहीं होता
मगर सपनों में बस सुख का सुखद संचार होता है।
© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
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≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈