श्री सूबेदार पाण्डेय “आत्मानंद”

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – आत्मानंद साहित्य# 135 ☆

☆ ‌ भोजपुरी रचना – पूंजीवाद ☆ श्री सूबेदार पाण्डेय “आत्मानंद” ☆

जब से जुग मशीन कै आयल,

छिनल हाथ से काम ।

पूंजी पती अमीर भयल,

‌मजदूरन कै नींद हराम।

 

बढ़ल बेकारी मजदूरन में,

पडल पेट पर लात।

जांगर चोरी सबै सिखाएस,

सबकर भूलि गइल औकात।

।।जब से जुग मशीन…।।१।।

 

मंदिर मस्जिद घर अंगना,

झालर बिजली से सजवला।

प्लास्टिक के पत्तल दोना में,

भगवान के भोग लगवला।

मुसहानें कोहरानें ना गइला,

उहवां जात लजइला।

कइसे जोत जली मंदिर में,

कइसे पूजा पूरी होइ ।

कइसे अशिष मिली माई से,

जब घर में बइठल भाई रोई।

।। जब से जुग मशीन कै…।।२।।

 

ना बगिया उपजल फूल खरीदला,

ना माइ के चढवला।

प्लास्टिक के फुलवन से तूं,

मंदिर के खूब सजवला ।

कइसे मंह मंह मंदिर महकी,

कइसे श्रृंगार माई कै होई।

कइसे सुहाग कै सेज सजी,

कइसे सेहरा सिर आज सजी।

कंहवां कोमल एहसास मिली,

उस फूलवा देहिया गडि़ जाइ।

अपने दुकान पर बइठल माली,

खाली बइठि बइठि पछिताई ।

।।जब से जुग मशीन कै… ।।३।।

 

जब जब पूंजी वाद बढ़ी,

सारा काम यंत्र से होई ।

ना हाथ में तोहरे काम रही,

बेटवा भूखल घर में रोइ।

गाय भइस ना घर में पलबा,

जांगर चोर हो जइबा।

घर में बेटवा भूख से रोइ,

पाउडर के दूध से काम चलइबा।

।।जब से जुग मशीन कै…।।४।।

 

बइठि बइठि चट्टी चौराहा,

खाली समय गवइबा।

खुद मेहनत करै भुला जइबा,

का अगली पीढ़ी के सिखइबा।

ना बेटवा खेलै मैदान में जाइ,

मोबाइल पर घर में खेली।

जबरी घर से बाहर निकलबा,

तोहसे होइ ठेला ठेली ।

कल पुर्जा कै जुग जवने दिन,

सबके लेइ फंसाई।

पीढ़ी आलसी बीमार हो जाई,

जीयल बवाल हो जाई।

।।जब से जुग मशीन कै… ।।५।।

 

एहि सुविधा साधन के चलते,

परदूषन  खूब बढ़त हौ।

धीरे धीरे कदम दर कदम ,

आगे मौत बढ़त हौ।

अबही समय बहुत हौ बाकी,

भइया चेता भयवा जागा।

देश समाज बचावै खातिर,

करा परिश्रम दिन भर भागा।

।।जब से जुग मशीन कै… ।।६।।

© सूबेदार  पांडेय “आत्मानंद”

संपर्क – ग्राम जमसार, सिंधोरा बाज़ार, वाराणसी – 221208, मोबा—6387407266

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈
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