श्री अरुण श्रीवास्तव
(श्री अरुण श्रीवास्तव जी भारतीय स्टेट बैंक से वरिष्ठ सेवानिवृत्त अधिकारी हैं। बैंक की सेवाओं में अक्सर हमें सार्वजनिक एवं कार्यालयीन जीवन में कई लोगों से मिलना जुलना होता है। ऐसे में कोई संवेदनशील साहित्यकार ही उन चरित्रों को लेखनी से साकार कर सकता है। श्री अरुण श्रीवास्तव जी ने संभवतः अपने जीवन में ऐसे कई चरित्रों में से कुछ पात्र अपनी साहित्यिक रचनाओं में चुने होंगे। उन्होंने ऐसे ही कुछ पात्रों के इर्द गिर्द अपनी कथाओं का ताना बाना बुना है। आज प्रस्तुत है आपके एक मज़ेदार व्यंग्य श्रंखला “प्रशिक्षण कार्यक्रम…“ की अगली कड़ी ।)
☆ व्यंग्य # 44 – प्रशिक्षण कार्यक्रम – भाग – 4 ☆ श्री अरुण श्रीवास्तव ☆
मेरी स्वरचित सभी पोस्ट, तुरंत तैयार की जाती हैं गरमागरम जलेबियों की तरह. जब लिखना शुरू होता है तो उसका कलेवर और यात्रा फिर विराम निश्चित नहीं होता. पहले कथा के पात्र या विषय पर कल्पना से सृजन किया जाता है फिर कहानी आगे बढ़ती है. हो सकता है इस कारण भी कभी कभी पात्र शुरुआत में जैसे होते हैं, वैसे अंत तक नहीं रहते, बदल जाते हों. परम संतोषी जी भी प्रारंभ मे शायद अलग रंग के लगे पर बाद में उनमें रचनात्मकता डालते डालते और उनके परिवार के आने से वो सबके प्रिय होते चले गये. खलनायक पात्रों का सृजन भी लेखकीय कर्म है, और उतना ही महत्वपूर्ण भी है, नायक का किरदार गढ़ने जितना. गब्बर सिंह के किरदार को गढ़ना इसका सर्वश्रेष्ठ उदाहरण है कि दर्शकों का डर और गुस्सा उसे ज्यादा, और ज्यादा, ज्यादा से ज्यादा लोकप्रिय बनाता चला गया. फिर इस रोल में अमजद खान का अभिनय, उनके डॉयलाग और बोलने की शैली ने गब्बर सिंह को फिल्मों का ऐतिहासिक खलनायक बना दिया. क्रूरता और कुटिलता के इस संगम की अपार लोकप्रियता और जन जन तक पहुंच, फिल्मजगत के लिये ऐतिहासिक और मील का पत्थर बन गई.
प्रशिक्षण के ये अनुभव भी Trainee प्रशिक्षु की हैसियत से 1975 से 2011 के बीच अटैंड किये गये विभिन्न प्रशिक्षण कोर्स पर आधारित हैं जिनमें मनोरंजन को ही प्राथमिकता दी गई है.
जब प्रायः रविवार को लोग प्रशिक्षण केंद्र पहुंचते हैं तो वहां का केंटीन स्टाफ भी शाम से चैतन्य हो जाता है. पिछले बैच के विदा होने से उत्पन्न हुआ खालीपन, रविवार शाम से ही धीरे धीरे भरने लगता है और सोमवार सुबह से ही कैंटीन फुल फ्लेज्ड वर्किंग मोड में आ जाती है.
कुछ प्रशिक्षण कार्यक्रम अनूठे होते हैं, रोचक भी, जिनमें “बिहेवियर साईंस और परिवर्तन 1,2,3.प्रमुख थे. इनकी एप्रोच और कलेवर ही अलग था जो यह संदेश भी देने में सफल रहा कि “Elephant can also fly if there is vision and approach. It was attempted seriously as well as successfully and results have to come as expected which came rightfully.”
प्रशिक्षण का एक कार्यक्रम ऐसा भी था जिसके सभी प्रतिभागी नये नये फील्ड ऑफीसर थे और उनका कार्यक्षेत्र मुख्यतः शासन प्रायोजित ऋण योजनाएं और कृषि प्रखंड के ऋणों तक ही सीमित था, पर कार्यक्रम “हाई वेल्यू एडवांस इन SSI & C&I Segment ” था. जाहिर था जो प्रतिभागी पढ़ना और सीखना चाहते थे, प्रशिक्षण उससे अलग परिपक्वता के लिये उपयोगी था. समापन दिवस पर पधारे मुख्य अतिथि के सामने जब यह बात उठी तो बॉल क्षेत्रीय कार्यालय और शाखाओं के कोर्ट में डाल दी गई. पर मुख्य अतिथि ने ये अवश्य कहा कि पार्टीसिपेंट्स अगर कार्यक्रम के हिसाब से नहीं आये थे, तो जो आये थे, उनके हिसाब से उपयुक्त प्रशिक्षण कार्यक्रम दिया जा सकता था. यही इनोवेटिव भी होता और व्यवहारिक भी.
प्रशिक्षण जारी रहेगा, इसी उम्मीद के साथ कि तारीफ करना मुश्किल हो तो आलोचना ही कर दीजिए, वो भी चलेगी.😀
क्रमशः…
© अरुण श्रीवास्तव
संपर्क – 301,अमृत अपार्टमेंट, नर्मदा रोड जबलपुर
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈