श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’
(ई-अभिव्यक्ति में संस्कारधानी की सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’ जी द्वारा “व्यंग्य से सीखें और सिखाएं” शीर्षक से साप्ताहिक स्तम्भ प्रारम्भ करने के लिए हार्दिक आभार। आप अविचल प्रभा मासिक ई पत्रिका की प्रधान सम्पादक हैं। कई साहित्यिक संस्थाओं के महत्वपूर्ण पदों पर सुशोभित हैं तथा कई पुरस्कारों/अलंकरणों से पुरस्कृत/अलंकृत हैं। आपके साप्ताहिक स्तम्भ – व्यंग्य से सीखें और सिखाएं में आज प्रस्तुत है एक एक विचारणीय एवं समसामयिक ही नहीं कालजयी रचना “धक्का मुक्की ”। इस सार्थक रचना के लिए श्रीमती छाया सक्सेना जी की लेखनी को सादर नमन।
आप प्रत्येक गुरुवार को श्रीमती छाया सक्सेना जी की रचना को आत्मसात कर सकेंगे।)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – व्यंग्य से सीखें और सिखाएं # 113 ☆
☆ धक्का मुक्की ☆
अपने आपको श्रेष्ठ दिखाने की होड़ में जायज- नाजायज सभी कार्य अनायास ही होते जाते हैं। संख्या बल के बल पर लोग नए- पुराने रिश्ते बनाते हुए एक दूसरे को कब धता देकर भाग जायेंगे कहा नहीं जा सकता।
दीवार की सारी ईंट, कम सीमेंट की वजह से हिल डुल रहीं थीं, अब प्रश्न ये था कि सबसे पहले कौन सी ईंट गिरे, गिरना तो उसके ऊपर सभी चाहती थीं, बस शुरुआत कैसे करें ? यही प्रश्न सबके मन में था।
जब कोई उच्च पद पर हो तो थोड़ा मुश्किल होता है।
खैर जब मन में चाह लो तो रास्ता निकल ही आता है, वैसे ही मौका मिल गया हितेश को उसने थोड़ा सा मुख खोला, कुछ अधूरे शब्द ही आ पाए जो दूसरे ने पूरे किए, अब धीरे – धीरे सभी ईंटे बिखरने लगीं, देखते ही देखते ईंटो का ढेर लग गया, अन्ततः केवल दो ईंट बची जो एक दूसरे को देखकर पहले तो मुस्करायीं फिर अपनी आदत अनुसार एक दूसरे के सिर पर ईंट दे मारीं, देखते ही देखते विशाल भवन के निर्माण की परिकल्पना धाराशायी हो गयी।
प्रकृति बदलाव चाहती है, कई बार संकेत भी देती है। पर लोग आँख, नाक, कान सब बंद कर बैठ जाते हैं, ऐसा लगता है जैसे वे प्रतीक्षा करते हैं ऐसे ही पलों की।
बदलाव की आँधी किसको कब और कहाँ उड़ा ले जायेगी ये बड़े- बड़े राजनीतिक ज्योतिषी भी नहीं बता सकते हैं। उठा- पटक का किस्सा अब पाँच वर्षों का इंतजार नहीं कर पा रहा है। मध्य राह अर्थात ढाई वर्षों में ही धुर विरोधियों से जुड़कर नया राग अलापने का दौर हमको कहाँ ले जायेगा ये तो वक्त तय करेगा। किन्तु साहित्यकार दूरदर्शी होते हैं सो पहले से सारी भविष्यवाणी कर देते हैं। कथा सम्राट मुंशी प्रेमचंद या प्रसिद्ध व्यंग्यकार हरिशंकर परसाई जी इन्होंने जो भी लिखा वो उस काल में मात्र कल्पना थी पर आज का कड़वा सत्य है। जब इन्हें पढ़ो तो ऐसा लगता है मानो इन्होंने सारी खबरों को देखकर अपनी पुस्तकें लिखी थी।
खैर ये तो परम सत्य है कि पद की गरिमा को कायम रखना व पद पर बने रहना सरल नहीं होता है। जोड़ें या तोड़ें पर जनता की नब्ज़ को पहचाने तभी शासन कायम रह पायेगा। योग्यता का होना बहुत जरूरी है, सदैव कार्य करते रहें, कुछ सीखें कुछ सिखाएँ सभी को अपना बनाएँ।
© श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’
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