प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध
(आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी द्वारा रचित एक भावप्रवण कविता “शरणागतम् …!”। हमारे प्रबुद्ध पाठक गण प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे। )
☆ काव्य धारा 96 ☆ “शरणागतम् …!” ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆
हे दीन बन्धु दयानिधे आनन्दप्रद तव कीर्तनम्
हमें दीजिये प्रभु शरण तव शरणागतम् शरणागतम् ||
हो विश्व आधार तुम, हर भक्त के संसार तुम
हितकर कृपा जगदीश तव, शरणागतम् शरणागतम् ॥
मन है बँधा सब ओर से भ्रम की अपावन डोर से
हम मुक्ति हित, देवेश, तव शरणागतम् शरणागतम् ॥
जलनिधि सी अस्थिर साधना, धरती सी उर्वर वासना
तुम प्रभु असीमाकाश, तव शरणागतम् शरणागतम्
हर दिन नई छोटी बड़ी कोई समस्या है खड़ी
विपदा विनाशक नाथ तव शरणागतम् शरणागतम् ॥
मन में न कोई अभिमान हो, इतना हमें प्रभु ध्यान दो
हे विश्वनाथ महान् तव शरणागतम् शरणागतम् ॥
माया का फैला जाल है हर पंथ में जंजाल है
सत्पथ का दो निर्देश तव शरणागतम् शरणागतम् ॥
तुम गुणों के आगार हो, करुणा के पारावार हो
जग नियंता विश्वेश तव शरणागतम् शरणागतम् ॥
रख तव चरण पै दो सुमन, प्रभु वन्दना में लीन मन
सर्वज्ञ त्वाम् नमाम्यहम् शरणागतम् शरणागतम् ॥
© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
ए २३३ , ओल्ड मीनाल रेजीडेंसी भोपाल ४६२०२३
मो. 9425484452
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈