श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’
(प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ जी के साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक साहित्य ”  में हम श्री विवेक जी की चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं। श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, मुख्यअभियंता सिविल  (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी , जबलपुर ) से सेवानिवृत्त हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है। आपको वैचारिक व सामाजिक लेखन हेतु अनेक पुरस्कारो से सम्मानित किया जा चुका है।आज प्रस्तुत है एक विचारणीय आलेख – पुस्तक का महत्व स्थाई है…।)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक सहित्य # 176 ☆  

? आलेख – पुस्तक का महत्व स्थाई है… ?

पिछले लंबे अरसे  (1992) से, जो किताब पढ़ता हूँ, उस पर लिखता हूँ . म प्र साहित्य अकादमी के पाठक मंच, मंडला तथा जबलपुर का संचालन करता रहा, फिर बनमाली सृजनपीठ के जबलपुर केंद्र की पाठक पीठ चलाई, बहुचर्चित पुस्तकें खरीद कर पढ़ी, या जिन रचनाकारों ने समीक्षा के आग्रह से किताबें भेजी उनके कंटेंट पर भी “पुस्तक चर्चा” लिखता रहा हूँ। पारंपरिक आलोचना के स्थान पर पुस्तक के कंटेंट की चर्चा करने की मेरी शैली की कुछ पाठकों, लेखकों, तथा चंद प्रकाशकों ने भी बहुत प्रशंसा की।

ई-अभिव्यक्ति व साहित्य संगम संस्थान स्वस्फूर्त आगे बढ़कर मेरी इस पुस्तक चर्चा को स्तंभ के रूप में प्रकाशित कर रहे हैं। जब तब जिन अखबारों पत्रिकाओं में भेज पाया उन्हें अनेक ने प्रकाशित भी किया । मेकलदूत अखबार ने तो इसे धारावाहिक स्तंभ ही बना लिया था।

पुस्तक चर्चा  कई लेखकों से आत्मीयता से जुड़ने का माध्यम बना।

एक उल्लेखनीय बात यह कि मैं प्रकाशक को भी उनके द्वारा प्रकाशित पुस्तक पर यह आलेख भेजता हूँ, किन्तु,आश्चर्यकारी है कि मात्र दस से बीस फीसदी प्रकाशक ही रिस्पांस करते हैं, शेष मात्र प्रिंटर की भूमिका में लगे, जिन्होंने शायद किताब छापी, लेखक को उसका ऑर्डर पकड़ाया, जो बेच सके वह बेचा और फुरसत पाई। पर सब कुछ निराशाजनक ही नहीं है कुछ गिने चुने प्रकाशक ऐसे भी हैं जो मुझे नियमित रूप से उनके द्वारा प्रकाशित किताबें समीक्षार्थ भेजने लगे।

पर ऐसे भी प्रकाशक जुड़े जिन्होंने स्वस्फूर्त आग्रह किया और कुछ पुस्तक चर्चाओं का संग्रह ही प्रकाशित कर दिया। मेरी किताब “बातें किताबों की” आई। अस्तु, पुस्तक अपने स्वरूप बदल रही है प्रिंट से ई बुक, आडियो बुक बन रही है, इन दिनों लाइब्रेरियां सूनी पड़ी रहती हैं, पर तय है कि पुस्तक का महत्व स्थाई है। इस उहापोह के दौर में भी पुस्तक का महत्व स्थाई है…

अतः पुस्तकें समीक्षा हेतु आमंत्रित है…

© विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

ए २३३, ओल्ड मीनाल रेसीडेंसी, भोपाल, ४६२०२३

मो ७०००३७५७९८

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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