डॉ राजकुमार तिवारी ‘सुमित्र’
(संस्कारधानी जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ. राजकुमार “सुमित्र” जी को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया। वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणा स्त्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं आपके खोज रही है तुम्हें निगाहें…।)
साप्ताहिक स्तम्भ – लेखनी सुमित्र की # 103 – खोज रही है तुम्हें निगाहें…
व्याकुल मन है, आकुल बाँहें खोज रही है तुम्हें निगाहें।
नव बसंत उतरा है भू पर सौरव से भर उठी दिशाएँ
तरुओं ने नव पल्लव पाए गर्भवती हो गई लताएँ
वातावरण रसीला हो तो मन में उभरे चाहें।
सरिता की कल कल की धारा भी मौन निमंत्रण देती है
और नशीली हवा चहक कर सम्मोहित कर देती है
मधुर मदिर आमंत्रण की ही सभी देखते राहें।
मेरे नयन प्रतीक्षा कुल है मनमोहन ने रास रचा है
रास निमज्जित अर्पित है जो जितना भी शेष बचा है
वृंदावन की सुधियों को अब पूजें और निबाहें
व्याकुल मन है खोज रही है तुम्हें निगाहें।
© डॉ राजकुमार “सुमित्र”
112 सर्राफा वार्ड, सिटी कोतवाली के पीछे चुन्नीलाल का बाड़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈
बेहतरीन अभिव्यक्ति