डॉ राजकुमार तिवारी ‘सुमित्र’

(संस्कारधानी  जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ. राजकुमार “सुमित्र” जी  को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी  हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया।  वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणा स्त्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं आपके मैं दीपक था…।)

✍  साप्ताहिक स्तम्भ – लेखनी सुमित्र की # 104  – मैं दीपक था✍

मैं दीपक था किंतु जलाया

चिंगारी की  तरह    मुझे

 इतना बहकाया है तुमने 

छल लगती है सुबह मुझे ।

 

तुमने समझा हृदय खिलौना 

खेल समझ कर छोड़ दिया 

कभी देवता सा    पूजा  तो 

कभी स्वप्न-सा तोड़ दिया ।

 

जन्म मृत्यु की आंख मिचौनी

 और ना   अब  मुझसे  खेलो 

बहुत बहुत पीड़ा तन मन की 

कुछ मैं ले लूं कुछ तुम   झेलो।

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© डॉ राजकुमार “सुमित्र”

112 सर्राफा वार्ड, सिटी कोतवाली के पीछे चुन्नीलाल का बाड़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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Shyam Khaparde

सुंदर रचना सर