श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’
(ई-अभिव्यक्ति में संस्कारधानी की सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’ जी द्वारा “व्यंग्य से सीखें और सिखाएं” शीर्षक से साप्ताहिक स्तम्भ प्रारम्भ करने के लिए हार्दिक आभार। आप अविचल प्रभा मासिक ई पत्रिका की प्रधान सम्पादक हैं। कई साहित्यिक संस्थाओं के महत्वपूर्ण पदों पर सुशोभित हैं तथा कई पुरस्कारों/अलंकरणों से पुरस्कृत/अलंकृत हैं। आपके साप्ताहिक स्तम्भ – व्यंग्य से सीखें और सिखाएं में आज प्रस्तुत है एक विचारणीय रचना “मन का मनका फेर”। इस सार्थक रचना के लिए श्रीमती छाया सक्सेना जी की लेखनी को सादर नमन।
आप प्रत्येक गुरुवार को श्रीमती छाया सक्सेना जी की रचना को आत्मसात कर सकेंगे।)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – व्यंग्य से सीखें और सिखाएं # 116 ☆
☆ मन का मनका फेर ☆
हेरा- फेरी के चक्कर में केवल दोषी ही मानसिक कष्ट नहीं उठाता वरन उससे जुड़े लोग भी शक के घेरे में आ जाते हैं। शिकायतकर्ता अपने को सौ प्रतिशत सही मानता है जबकि आरोपी मामला शांत करवाने हेतु हर समझौते के लिए तैयार हो जाता है। ऐसे में सबसे बड़ी भूमिका संवाद की होती है। यदि विवाद को शांत करना है तो क्षमा याचना के साथ की गयी प्रार्थना को स्वीकार करना चाहिए। अनावश्यक बात का बतंगड़ सबका चैन छीनता है। मनुष्य सामाजिक प्राणी है। जहाँ उसके अच्छे कार्यों से सभी सुखी होते हैं तो वहीं दूसरी ओर जाने- अनजाने किए गए गलत कार्यों की आँच से जुड़े हुए लोगों का झुलसना स्वाभाविक है।
करे कोई भरे कोई ये मुहावरा कई अर्थों में प्रयोग होता है। कहते हैं कर्म का प्रभाव अवश्यम्भावी होता है। कार्य तो करें किन्तु इतनी जल्दबाजी नहीं होनी चाहिए कि परिणाम क्या होगा इसकी चिंता करने का अवसर ही न मिले। सबको साथ लेकर चलने की कला जिसको आ गयी उसे सब कुछ आ जाता है। जाना आना तो प्रकृति का नियम है। सब कुछ पूर्व निर्धारित होता है। किसी का होना या न होना कोई मायने नहीं रखता बस योजना सही होनी चाहिए। यदि सही तरीके से निर्धारण हो तो प्रक्रिया सुचारू रूप से चलती रहती है। वास्तव में टीम लीडर ऐसा होना चाहिए जो हमेशा बैकअप प्लान तैयार करके रखता हो। बस शुरुआत करिए यदि आप चलने लगेंगे तो लोग स्वयं आपके साथ खड़े होकर हिप- हिप हुरै करनें में सहयोग देंगे।
पूरी व्यवस्था यदि चार चरणों में हो तो कोई भी आकर खाली स्थान को भर देगा और किसी को समझ भी नहीं आएगा कि क्या उठा- पटक हो गयी। प्रातः स्मरणीय वंदना के साथ विचार शक्ति को सशक्त करिए और जुट जाइए दैनिक कार्यों के संपादन में। लगभग पचहत्तर प्रतिशत कार्य पूरा करने के बाद इंतजार करिए कि कोई न कोई बचा हुआ पच्चीस प्रतिशत पूरा करने के लिए आएगा क्योंकि आखिरी दौर में अपने आप भीड़ इकट्ठी हो जाती है।
जीवन का फलसफा है कि-
मन का मनका जाप कर, कर्म करो निःस्वार्थ।
लक्ष्य साध बढ़ते रहो, जैसे बढ़ता पार्थ।।
© श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’
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