प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध

(आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी  द्वारा श्री गणेश चतुर्थी पर्व पर रचित एक कविता  “कल्पना का संसार…”। हमारे प्रबुद्ध पाठकगण  प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी  काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे। ) 

☆ काव्य धारा 99 ☆ गज़ल – कल्पना का संसार” ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

मनुज मन को हमेशा कल्पना से प्यार होता है

बसा उसके नयन में एक सरस संसार होता है।

जिसे वह खुद बनाता है, जिसे वह खुद सजाता है

कि जिसका वास्तविकता से अलग आकार होता है।

जहाँ हरयालियां होती, जहाँ फुलवारियां होती

जहाँ रंगीनियों से नित नया अभिसार होता है।

जहाँ कलियां उमगतीं है जहाँ पर फूल खिलते हैं

बहारों से जहाँ मौसम सदा गुलजार होता है।

जहाँ पर पालतू बिल्ली सी खुशियां लोटती पग पै

जहाँ पर रेशमी किरणों का वन्दनवार होता है।

अनोखी होती है दुनियां सभी की कल्पनाओं की

जहाँ संसार पै मन का मधुर अधिकार होता है।

जहाँ सब होते भी सच में कहीं कुछ भी नहीं होता

मगर सपनों में बस सुख का सुखद संचार होता है।      

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए २३३ , ओल्ड मीनाल रेजीडेंसी  भोपाल ४६२०२३

मो. 9425484452

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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