डॉ कुंदन सिंह परिहार
(वरिष्ठतम साहित्यकार आदरणीय डॉ कुन्दन सिंह परिहार जी का साहित्य विशेषकर व्यंग्य एवं लघुकथाएं ई-अभिव्यक्ति के माध्यम से काफी पढ़ी एवं सराही जाती रही हैं। हम प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – “परिहार जी का साहित्यिक संसार” शीर्षक के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाते रहते हैं। डॉ कुंदन सिंह परिहार जी की रचनाओं के पात्र हमें हमारे आसपास ही दिख जाते हैं। कुछ पात्र तो अक्सर हमारे आसपास या गली मोहल्ले में ही नज़र आ जाते हैं। उन पात्रों की वाक्पटुता और उनके हावभाव को डॉ परिहार जी उन्हीं की बोलचाल की भाषा का प्रयोग करते हुए अपना साहित्यिक संसार रच डालते हैं।आज प्रस्तुत है समसामयिक विषय पर आधारित आपका एक अतिसुन्दर व्यंग्य ‘पच्चीस परसेंट का वादा’। इस अतिसुन्दर रचना के लिए डॉ परिहार जी की लेखनी को सादर नमन।)
☆ व्यंग्य – पच्चीस परसेंट का वादा ☆
सबसे पहले हमारा परनाम लीजिए क्योंकि आप ठहरे व्होटर और हम ठहरे उम्मीदवार। उम्मीदवार का धरम बनता है व्होटर को परनाम करने का। हम हैं सीधे-सादे आदमी, इसलिए हम सीधी-सादी बात करेंगे। फालतू का फरफंद हमें आता नहीं,कि एक घंटा भर तक आपको बंबई- कलकत्ता घुमाएँ, उसके बाद मतलब की बात पर आएँ।
तो हम यह निवेदन करने आये हैं कि अब की बार चुनाव में बंसीधर को व्होट मत दीजिए, हमें दीजिए, यानी मुरलीधर को। अब आप कहेंगे कि क्यों दीजिए भई मुरलीधर को? तो हमारा निवेदन है कि हमें बंसीधर के कोई खास सिकायत नहीं। सिकायत यही है कि उन्होंने छेत्र की परगति के लिए कोई काम नहीं किया। अब छेत्र परगति नहीं करेगा तो देस कैसे परगति करेगा?
हमारी सिकायत यही है कि बंसीधर ने छेत्र की परगति पर एक्को पैसा खरच नहीं किया। कुछ अपनी परगति पर खरच किया, बाकी अफसर-अमला की परगति पर खरच हो गया। अब ये तो गलत काम हो गया है ना? आप छेत्र पर एक्को पैसा खरच नहीं करेंगे तो छेत्र कैसे परगति करेगा और देस कैसे परगति करेगा? इसलिए हमारा जी दुखी है।
अब आप कहेंगे कि मुरलीधर, कल तक तो बंसीधर के गलबाँही डाले फिरते थे,आज सिकायत करते हो। तो आपका कहना वाजिब है। लेकिन मामला सिद्धांत का बन गया है। जब सिद्धांत के खिलाफ बात जाने लगेगी तब भला कौन बरदास्त करेगा?
हमारा कहना यह है कि भाई, छेत्र की परगति के लिए जो पैसा मिलता है उसका पच्चीस परसेंट जरूर छेत्र पर खरच होना चाहिए। पच्चीस परसेंट भी खरच नहीं होगा तो छेत्र तो एक्को तरक्की नहीं करेगा ना? इसलिए पच्चीस परसेंट छेत्र पर खरच होना ही चाहिए।
बाकी पचत्तर परसेंट नेता और अफसर- अमला अपनी परगति पर खरच कर सकता है। यह तो एकदम जायज बात है। सोचिए, नेता सार्वजनिक जीवन में किस लिए आया है? भाड़ झोंकने आया है क्या? जो नेता अपनी और अपने नाते-रिस्तेदारों की परगति न कर पाए वो देस की परगति क्या खाके करेगा? तो भई नेता तो अपनी परगति करेगा।
अफसर-अमला अपनी परगति नहीं करेगा तो काम कैसे करेगा? सूखी तनखा में काम करेगा क्या? मोटर चलाने के लिए पेटरोल-डीजल नहीं लगेगा? तब? तनखा से कोई काम करने की ताकत आती है क्या? तनखा तो सबको मिलती है, लेकिन सब के ऊपर तो देस की परगति का भार नहीं होता। तब?
तो पचत्तर परसेंट नेता और अफसर- अमला अपनी परगति पर खरच कर सकता है। बाकी पच्चीस परसेंट छेत्र पर हर हालत में खरच होना चाहिए। इसमें कोई गड़बड़ हम बरदास्त नहीं करेंगे। बंसीधर ने यही गड़बड़ किया कि सेंट परसेंट पैसा अपनी परगति पर खरच कर लिया। इसलिए हमारा बंसीधर से बिरोध है। हम आपसे क्या बताएँ कि जाने कितनी योजनाओं का पैसा बंसीधर के पास आया और उन्होंने पूरा का पूरा अपनी परगति पर खरच कर लिया। एकदम गलत काम हो गया। अब आप ये मत पूछिए कि कौन-कौन योजनाओं का पैसा आया था, क्योंकि हम ये न बताएँगे। बात ये है कि कल के दिन हमीं चुने जाएँगे और आप हमसे पूछने लगे कि फलाँ- फलाँ योजना में कितना-कितना पैसा आया तो हम मुस्किल में पड़ जाएँगे। इसलिए आप बस इतना समझ लीजिए कि बंसीधर ने बहुत सी योजनाओं का सेंट परसेंट पैसा अपनी परगति पर खरच कर लिया।
तो हमारा आपसे वादा है कि हम पच्चीस परसेंट पैसा छेत्र की परगति पर जरूर खर्च करेंगे। ये फरफंद नहीं है, आपको दिखायी पड़ेगा कि पच्चीस परसेंट पैसा खरच हुआ है। हाथ कंगन को आरसी क्या? तो आप हमारा बिसवास कीजिए और अपना व्होट हमीं को दीजिए, यानी मुरलीधर को। पच्चीस परसेंट का हमारा आपसे वादा है। हम कसम-वसम तो न खाएँगे क्योंकि कसम खाएँगे तो आप समझेंगे कि झूठ बोल रहे हैं। इसलिए हम कसम न खाएँगे। वादा जरूर करते हैं।
अंत में आप से निवेदन है कि हमें व्होट दीजिए और देस से भरस्टाचार खतम करने में हमारी मदद कीजिए। अब एक बार ताली तो बजा दीजिए। हम आपसे इतना बड़ा वादा कर रहे हैं और आप बस हमें मुटुर मुटुर निहारे जा रहे हैं।
© डॉ कुंदन सिंह परिहार
जबलपुर, मध्य प्रदेश
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈