श्रीमती सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’
(संस्कारधानी जबलपुर की श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’ जी की लघुकथाओं, कविता /गीत का अपना संसार है। साप्ताहिक स्तम्भ – श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य शृंखला में आज प्रस्तुत है आपकी नवरात्रि पर्व पर आधारित एक भक्ति गीत “नव दूर्गा की आराधना”।)
☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य # 139 ☆
☆ भक्ति गीत 🔥 नव दूर्गा की आराधना 🔥
कर नव दुर्गा आराधना, भाव भक्ति के साथ।
सकल मनोरथ पूर्ण हो, बने बिगड़ी बात।
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आज भवानी चल पड़ी, होके शेर सवार।
भक्तों का करती कल्याण, दुष्टों का संहार।
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श्वेत वस्त्र हैं धारणी, कमल पुष्प लिए हाथ।
बटुक भैरव चल पड़े, माँ भवानी के साथ।
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शक्ति का है रुप निराला, भक्ति से भवपार।
श्रद्धा से सुमिरन करें, भर देती माँ भंडार।
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ऊँचे पर्वत वासिनी, कहीं गुफा में निवास।
आन पडे जो शरण में, पूरण करती आस ।
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कालचक्र इनकी गति, आगम निगम बखान।
होते दिन अरु रात हैं, सब पर कृपा महान।
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लाल ध्वजा लहरा रहीं, ओढ़े चुनरियां लाल।
अस्त्र शस्त्र लिए हाथ में, अर्ध चन्द्रमा भाल।
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कहीं होती शक्ति पूजा, कहीं गरबे की रात।
ढोल मंजीरे बज उठे, कहीं बाँटे प्रसाद।
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कर सोलह श्रृंगार माँ, बैठी आसन बीच।
सबका मन मोह रही, मधुर मुस्कान खींच।
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बोए जवारे भाव से, माँ भवानी से प्रार्थना।
सुख शांति वैभव लक्ष्मी, पूरी हो आराधना।
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© श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈