प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध
(आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी द्वारा श्री गणेश चतुर्थी पर्व पर रचित एक रचना “हासिल नहीं होता कुछ भी…”। हमारे प्रबुद्ध पाठकगण प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे।)
☆ काव्य धारा #103 ☆’’हासिल नहीं होता कुछ भी…” ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆
औरों के हर किये की खिल्ली उड़ाने वालो
अपनी तरफ भी देखो, खुद को जरा संभालों।
बस सोच और बातें देती नहीं सफलता
खुद को बड़ा न समझों, अभिमान को निकालो।
हासिल नहीं होता कुछ भी, डींगे हाँकने से
कथनी के साथ अपनी करनी पै नजर डालो।
सुन-सुन के झूठे वादे पक गये हैं कान सबके
जो कर न सकते उसके सपने न व्यर्थ पालो।
सब कर न पाता पूरा कोई भी कभी अकेला
मिलकर के साथ चलने का रास्ता निकालो।
आशा लगाये कब से पथरा गई हैं ऑखें
चाही बहार लाने के दिन न और टालो।
जो बीतती है मन पै किससे कहो बतायें
बदरंग हुये घर को नये रंग से सजालो।
कोई ’विदग्ध’ अड़चन में काम नहीं आते
कल का तो ध्यान रख खुद बिगड़ी तो बना लो।
© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
ए २३३ , ओल्ड मीनाल रेजीडेंसी भोपाल ४६२०२३
मो. 9425484452
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈