डॉ राजकुमार तिवारी ‘सुमित्र’
(संस्कारधानी जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ. राजकुमार “सुमित्र” जी को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया। वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणा स्त्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं आपके सुमित्र के दोहे।)
साप्ताहिक स्तम्भ – लेखनी सुमित्र की # 109 – सुमित्र के दोहे
*
ब्रह्म तुम ही हो नियंता, तुम ही हो मन-मारीच ।
धनुष-मुरलिका साँस की, तुम्हीं रहे हो खींच।।
*
शंकर, तुलसी, सूर में, करते शब्द निनाद ।
मीरा के नुपुरों में, करते हो संवाद ।।
*
ओ! लीलामय सुदर्शन, गोकुल मुक्ति धाम ।
मेरे मन में आ बसो, ओ! मीरा के श्याम।।
*
मीरा गिरधर प्रिया का, भक्त करें गुणगान।
मीरा की समता नहीं, अद्वितीय प्रतिमान।।
*
मीरा का सुमिरन करूँ, ध्याऊँ श्याम सुजान ।
वर्णन क्षमता दीजिए, वाणी का वरदान।।
*
© डॉ राजकुमार “सुमित्र”
112 सर्राफा वार्ड, सिटी कोतवाली के पीछे चुन्नीलाल का बाड़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈